Wednesday, June 23, 2021

कैसे करे सफलता आलिंगन

कैसे करे सफलता आलिंगन
जब तक मन न बने स्व अवगुण का दर्पण।

बंदिश मुक्त रखा बच्चों का बचपन,
आस संजोए मात-पिता मन ही मन।
उभरे बच्चों में हर तरह के  सद्गुण,
पाबंदियों के बिन आये कहाँ से गुण।

उड़ता मन चाहे सदा उन्मुक्त गगन,
मुक्त मन को बांध न पाए बंधन।
चित ठहरे तो संजोए सब सद्गुण,
और त्यागे अन्तस् के सारे अवगुण।

बिना तपस्या कहाँ से पाएं ज्ञान गहन,
तज के सारे मोह करने होंगे बड़े जतन।
खुद की कमियों का कर स्वयं मनन,
प्रगक्ति पथ पर निरंतर रहे मन।

न रोक न टोका न बाँधा कभी मन।
कैसे करें भला सफलता आलिंगन ।।

13 comments:

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-06-2021को चर्चा – 4,105 में दिया गया है।
आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क

Supriya pathak " ranu" said...

सादर आभार आदरणीय मैं उपस्थित रहूंगी नियत समय पर ।

Sweta sinha said...

स्व अवगुण अगर दर्पण हो जाए
कर्म मानवता को अर्पण हो जाए
बदल जाए हर तस्वीर समाज की
यदि शुद्धियों का तर्पण हो जाए।
-----
सुंदर भावनाओं से भरी रचना प्रिय सुप्रिया जी।

सादर।

Sudha Devrani said...

उड़ता मन चाहे सदा उन्मुक्त गगन,
मुक्त मन को बांध न पाए बंधन।
चित ठहरे तो संजोए सब सद्गुण,
और त्यागे अन्तस् के सारे अवगुण।
बहुत ही सटीक वाषय पर लिखा आपने...आजकल बच्चों को अत्यधिक प्यार और उन्मुक्त जीवन देते माता-पिता भूल रहे हैं कि बिना रोके टोके ये मन तो क्या तन का बंधन सहने योग्य भी नहीं बनेंगें मन को ना बाँधने वाले ये बच्चे सलता के लिए संघर्ष कैसे करेंगे।
बहुत ही लाजवाब भावाभिक्ति।
वाह!!!

Supriya pathak " ranu" said...

सह्रदय धन्यवाद आदरणीया स्वेता जी और सुधा जी

Dr (Miss) Sharad Singh said...

वाह !!!
बहुत सुंदर रचना...

Jyoti Dehliwal said...

बिना तपस्या कहाँ से पाएं ज्ञान गहन,
तज के सारे मोह करने होंगे बड़े जतन।
खुद की कमियों का कर स्वयं मनन,
प्रगक्ति पथ पर निरंतर रहे मन।
बहुत सुंदर प्रस्तुति।

Supriya pathak " ranu" said...

हार्दिक आभार शरद जी आपका स्वागत है पहली बार मेरे ब्लॉग पर
और ज्योति दीदी आपका भी हृदय से आभार आपसे तो पुराना नाता है

Anuradha chauhan said...

बेहद खूबसूरत रचना 👌👌

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कुछ पाने के लिए शायद बंधन भी ज़रूरी होते हैं ।
गहन अभिव्यक्ति ।

PRAKRITI DARSHAN said...

उड़ता मन चाहे सदा उन्मुक्त गगन,
मुक्त मन को बांध न पाए बंधन।
चित ठहरे तो संजोए सब सद्गुण,
और त्यागे अन्तस् के सारे अवगुण।---बहुत गहन लेखन।

मन की वीणा said...

सार्थक बात कहती सुंदर रचना।

Supriya pathak " ranu" said...

आदरणीया अनुराधा जी,संगीता जी,कुसुम जी,और आदरणीय संदीप जी हृदय तल से आभार उत्साहवर्धन हेतु

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