Wednesday, February 17, 2021

मैं लड़की हूँ, सिर्फ इसलिए

मैं लड़की हूँ,सिर्फ इसलिए
मत करना मुझे तरस खा कर प्यार,
मुझे लक्ष्मी और सरस्वती कह कर 
मत करना अनचाहा दुलार,
मैं जो हूँ, वही स्वीकार पाओ,
तभी बढ़ाना हाथ दुलार का,
फिर भी मैं अस्तित्व में रहूंगी सदा
बिना किसी के प्यार के आधार का ।

समझ पाओ मुझे अपना अंश,
तभी अपनाना,
जैसे बेटे को समझते हो बुढ़ापे का सहारा
मुझे भी समझ पाओ तभी बढ़ाना प्यार हाथ का,
नही तो सक्षम हूँ मैं जीवित रहने में बिना प्यार किसी साथ का,
जितना अंश आपका बेटे के रगों में है,
उतना ही बेटी के भी,
चीनी के कणों के आकार भले अलग हो,
पर घोलते सब मिठास ही हैं,
समझ पाओ वैसे मुझे भी अपना अंश 
तो ही अपनाना,
मुझे भाई से आगे नही जाना 
न उसके पीछे घूमना है,
मेरा अस्तित्व एकल है,
मुझे बस अपने हिस्से का आसमान चूमना है।
न कोई अभियान न कोई फरमान चलाओ,
करना हो कुछ तो ऐसा कर जाओ,
कोई भी नारी गर्भधारण कर मन के इस दुविधा से 
निकल जाए,
की आनेवाला बच्चा लड़की आये या लड़का आये,
प्रकृति ने ही अलग किया है,
अलग ही रहने ददन,
जिसकी जो प्रकृति है उसी में जीने दें,
हर माँ का इतना ही हो सोचना,
मुझे लड़की को लड़का न बनाना,
न लड़को से आगे ले जाना,
बस दे देना है उसका आसमान उसे,
जहां खुलकर जिये वो,और जान जाए वो आपन अस्तित्व बनाना

Thursday, February 4, 2021

बिन माँ की बेटियाँ

होती हैं थोड़ी अल्हड़,थोड़ी बिंदास
घूमती रहती हैं आजीवन धुरी बन कर
अपनी माँ के आसपास
माँ की अनुपस्थिति, और 
जिम्मेवारियों का बोझ 
बना देता है उन्हें वक़्त से पहले समझदार
फिर भी अपनी किस्मत मानकर 
हर ताना सह लेतीं हैं,
किसी से भी नही अपने मन 
का हर दर्द माँ के एक तस्वीर से कह लेती हैं
बाप के लाड़ ने बिगाड़ा है,
ये कहना हर कोई जानता है,
पर एक माँ के बिना होकर भी,
बाप और भाइयों को 
किस तरह संभाला है 
ये कहाँ कोई मानता है,
जानती हैं प्यार की कमी को,
सो दिल खोलकर प्यार बाँटती हैं,
दुख के हर लम्हे को भी हंसकर काटती हैं,
मै गलत नही हूँ यह भी न कह पाती,
कोई कहे मेरी बेटी सबसे अच्छी है,
यह अपने पीठ पर कहां सुन पाती,
न मायका न  ससुराल ही अपना हो पाता है,
फिर भी नियति उसकी दोनों जगह को निभाना है,
माँ की कमी को बस उसका दिल ही जान पाता है,
इस दर्द को कोई कहाँ समझ पाता है,
हाँ होती हैं बिन माँ की बेटियां
थोड़ी अल्हड़ थोड़ी बिंदास
हंसते चेहरे में होता है उन्हें भी दर्द का आभास।
सुप्रिया"रानू"

गौरैया

चहकती फुदकती मीठे मिश्री दानों के  सरीखे आवाज़ गूंजता था तुम्हारे आने से बचपन की सुबह का हर साज़ घर के रोशनदान पंखे के ऊपरी हिस्से  कभी दीवार ...