तुमने ही जना राम,रावण
कृष्ण, दुर्योधन,
जननी हो सृष्टि के निर्माण
में सहभागी बनी,
फिर ये कौन से हवस के पुजारी जने
जो महीने भर की जान भी न बख्शते,
तुम ही आज अपराधी बनी,
नैनो में हवस,आत्मा तक वासना लिप्त हैं,
तभी तो जान लेकर भी इनके शरीर अतृप्त हैं
इसे मनोरोग कहूँ या व्याधि बड़ी,
जो दिखता न है सामने एक कुशुम पड़ी,
ईमान को दोष दूँ समाज को दोष दूँ या उसकी जननी
को धिक्कार दूँ,
तीन महीने की नन्ही कोमल पुष्प की माँ पूछती है,
जो दूध का बोतल तक न थाम पाती,
कहो उस बेटी को क्या हथियार दूँ।
तुमने ही जना......
सृष्टि के अस्तित्व का आधार,
नर नारी के अंतरंग प्रेम का व्यवहार,
आज एक महामारी बना,
समय से पूर्व ही यह शारीरिक भूख
जैसे छुवाछुत की बीमारी बना,
आत्मा शुद्धि हो,या सन्यास दिलाया जाए,
इस बीमारी से निजात के लिए अपराधियों
की जान लिया जाए,
तुमने ही जना.....
नियम कानून,परंपरा संस्कार क्या ऐसे
उदंड मनों को बांध पाएंगे,
सीमाओ में सीमित नारियों के संस्कार क्या
काली बनकर रक्त पीने को साध पायेंगे,
नरसंहार फांसी मृत्यु क्या यही एक रास्ता होगा,
आओ मिलकर हम नारियां
पालन दें ऐसा पुत्रो को जिसके संस्कारों का
आदर्श ही संयम का वास्ता होगा...
तुमने ही जना...
सुप्रिया"रानू"
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