Saturday, April 28, 2018

मेरी बिटिया

हर रोज महसूस करती हूं आज आप सबको अपने एहसास के आंगन में एक सैर कराना चाहती हूँ, बतायेगा कैसी लगी ये ठंडी हवा...
कामना है,इतनी सी
मेरी बिटिया भी हो ऐसी
रोज सुबह मेरा रसोईघर में जाना
और मेरी नन्ही बेटियों जैसी गौरैयों का चहचहाना
मानो पूरी रात की आपबीती सुना रही हो,
या आगामी दिनचर्या बता रही हो,
ऐसा कर्मठ आत्मस्वभिमानी प्रकृति,
मैं भी प्रेरित हो उठती हूँ,
चोंच में एक -एक तिनका बटोरना,
मेरे हाथ बंटाने पर मुझ पर बरस जाना,
जैसे मेरी नन्ही गुड़िया,दूर कर दे अपने खिलौनों से,
माँ आपको समझ नही आएगी मेरी दुनिया,
गर्म चावल और पानी की कटोरी के लिए
घर को सर पे उठा लेना,
जरा देर हुई तो घूम कर
मेरे कमरे तक हो आना,
और मेरे सामने तो बड़ी शर्म आती है,
नन्ही लाड़लियों को,
छुप जाऊँ तो उछल उछल के दाने खाना,
मैं जरा कोशिश जो करूँ
उनका नीड़ सजा दूँ,
रूठ के अपने नीड़ का जगह बदल लेना,
बिल्कुल जैसे नन्ही गुड़िया का
अपने  घरौंंदों में मेरी कोई हिस्सेदारी न देना,
तुम अपने चीं- चीं में कहती हो,
और मैं अपनी हिंदी में सुनती हूँ,
तुम्हारी और मेरी एक ही भाषा है
प्रेम और सिर्फ प्रेम,
काश ये दुनिया और उसके लोग भी
ऐसे ही हमारी तरह अलग जुबाँ के होते ,
अपनी अपनी भाषा कहते और सिर्फ प्रेम समझते,
स्वार्थ में दूसरों की क्षति करने की जगह
खुद कर्मठ हो जाते,
हो जाता जग ये तुम्हारे चहचाहटों
से सुकून भरा,
धन्यवाद मेरी लाड़लियों जो
इतने प्रेम से मेरा जीवन रूपी गोद भरा..
        सुप्रिया'"रानू"

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