Friday, May 4, 2018

इंतज़ार

इंतज़ार है या एक भ्रम भर,
जो शायद पूरा ही नही हो आजीवन,
फिर भी चाहता है ये मन
तुम आओ वापस इस जीवन,
देह छोड़कर गए साल बीते तुम्हे,
पर मेरा तो मायका ले गयी हो,
अनुज का बचपन जिम्मेवारियों में
डूबा गयी हो,
तुम नही थी कन्यादान करने को,
कर लिया पिता की काँपती हाथों ने अकेले,
आती जो क्षण भर को उनके हाथों का सहारा बनने
मन को मेरे था इंतज़ार,
जानती हूं नाहक था ये अरमान बेकार,
फिर भी था तुम्हारा इंतज़ार..
जीवन के उलझनों में उलझती हूँ,
तुम्हे याद करती हूं और सुलझती हूँ,
मुझसे भी विकट परिस्थितियां देखी तुमने
उबरी सबसे अकेले अपने दम पर
तुम्हारा अंश हूँ मैं भी उबरूंगी,
पर जो ये मन मे है,सबके बाद भी
कभी चुपके से रात में आकर मेरा माथा सहला जाओ
ये इंतज़ार तो हर रात करूँगी,
रो लुंगी याद कर के सदेह न हो तुम
फिर भी आओगी ये इंतज़ार तो सदा करूँगी
न जाने कितने हाथों का कितनी जगह खाना खाया,
पर जो स्वाद तुम्हारे अनमने से बनाये खाने में भी होता था,
वो आज तक न पाया ,
जानता है ये मन तुम न बना सकती अब कुछ भी
मृत्यु का सच जानती हूँ,
आंखों देखा है सबकुछ वो हाथ यहीं रह गया राख बनकर
पर मानता नही है ये मन
सोचती हूँ कभी तो परियों की तरह आओगी
आकर कुछ बनाकर छुपाकर रख जाओगी रसोई में,
मन मे है अभी भी ये इंतज़ार
जानती हूं नाहक हैं ये
मेरे अरमान बेकार फिर भी
है तुम्हारा इंतज़ार,
तुम्हारी साड़ियां जो मुझे बेहद पसंद थी,
वैसी ढूँढूँ भी तो न पाती हूँ,
तुम ही आना किसी दिन ढूँढकर
रख जाना सिरहाने
बातें जिनमे हम पूरी रात बिता देते थे अब न हो पाती
किसी दिन खतों में लिख के रख जाना,
कर रही हूं गुड़ियों के कहानी वाला इंतज़ार,
परी बनकर ही पूरा कर जाना मेरा अधिकार
आना किसी दिन मिलने को ही दो क्षण
सोचना विचारना
पर पूरा कर देना मेरा इंतज़ार

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