Wednesday, May 9, 2018

जो तुम आ जाते एक बार

स्त्री जो सर्वस्व न्यौछावर कर के भी खुद को अधूरा समझती है जिससे वह प्रेम करती है उसके बिना ,अपना जीवन क्या रोजमर्रा की छोटी छोटी चीजों में जोड़ के रखती है,निर्भरता नही यह अटूट प्रेम है,जिससे वह आजीवन मुक्त नही होना चाहती सब समझ कर भी वो इसी में डूबे रहना चाहती है....
नींद  से दूर ये आंखे   
बोझिल हो जाती,
नम पलकों के कोरों
से नीर ओझिल हो जाती,
भोर होती जीवन में
और सुकून की रात होती
दिलो दिमाग मे चलने को
तुम्हारे अलावा और भी बात होती
जो तुम आ जाते एक बार...
सुना कर के रखा है
जो नयन का कोना कोना
भर डालती सलीके से काली स्याही
सुर्ख होठों पर मल देती
थोड़ी लाली,
ये जो मुरझाया सा चेहरा मेरा,
हो जाता सुर्ख लाल
खिले गुलाब की पंखुड़ियों की तरह
पैरों में महावर,और हथेलियों पर मेहंदी का रंग चढ़ता,
जो तुम आ जाते एक बार...
ये रसोई से जो मरीजो के खाने वाली
महक आती है हर शाम,
छौंक के हींग सौंफ और न जाने कितनी
बारीकियों से पकाती 
खुशबू में भीगी न जाने कितने किस्मो की सब्जियां,
रोटियां जो सुखी यूँही  रहती हैै,
तर होती मख्खन और मेरे प्यार में..
जो तुम आ जाते एक बार...
जीती हूँ, खुश हूँ, सजती हूँ,
जरूरत पड़े तो मुस्कुराती भी हूँ,
पर जोड़ रखा है जो अपना वजूद तुमसे
कैसे कहूँ तुम्हारे बिना खुद को भी न कही पाती हूँ,
नदी हूँ बहती हूँ निर्बाध निर्झर,
पूरे परिवार की प्यास स्वरूप सारी जरूरत पूरा करती हूं
पर मेरा समुंदर तो तुम हो,
अपने अस्तित्व का असली मतलब
तुममे मिलकर ही पाती हूँ..
समा जाती तुम्हारे आगोश में खुद को भी भुलाकर
जो तुम आ जाते एक बार....
    सुप्रिया "रानू"

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