Tuesday, June 5, 2018

पर्यावरण

विश्व पर्यावरण दिवस की शुभकमनाएँ दूँ या
प्रकृति पर हुए प्रकोप की व्यथा कहूँ,हम इससे बने हैं और ये हमसे ही है सब जान समझकर भी अपनी सुविधाओं का अंधाधुंध विस्तार करने के क्रम में हम इस कदर नुकसान पहुंचा रहे जिसकी व्याख्या मुश्किल है,
जितना मैने महसूस किया समझा है यहां व्यक्त करने की कोशिश कर रही,

परि + आवरण = पर्यावरण
हमारा बाह्य आवरण
जैसे हमारी त्वचा..
कभी इसे खुद के शरीर से छीलकर हटा दीजिये,
फिर महसूस कीजिये दर्द की अनुभूति,
जो हम दे रहे हैं प्रकृति को...
जो हमे तृप्त करने को दे शीतल जल
उसे हम प्लास्टिक गंदगी और न जाने
कितनी दूषित चीजों से जूझने वाला कल

अपने घर के लिए कर रहे हो
उन निरीह जानवरों को बेघर,
स्वार्थ की सीमा न तोड़ो,
कम से कम उपयोग किया जल
तो भू जल के लिए साफ कर के छोड़ो,
यह हम मानवों की लायी त्रासदी है,
न धरा,न आसमान ,न जल,न वायु,
कुछ भी शेष न बचा है, तुम्हारे प्रोकोपो से,
ध्रूवों पर जमी बर्फ तक पिघला रहे हो,
अंधाधुंध मकानों को बनाकर देखो
बरसो से जमे पर्वतों को भी हिला रहे हो,
प्रकृति सहते सहते अब जाके कह रही है,
अब दे रही है कुछ सज़ाएं जो चिरकाल से सह रही है,
सूरज आग उगल रहा है,
धरती उबल रही है,
चीखकर रो भी न सकते उन पेड़ों को अंधाधुंध काट रहे हो,
बिना साफ किये कारखानों की धुआँ में
सैकड़ों बीमारियां बाँट रहे हो,
प्लास्टिक से भर दिया है जमीन
न सांस ले पाती है ये धरा,
न जल में बेकल मछलियाँ,
प्लास्टिक और समुद्रों में रिसने वाले तेल,
कर रहे हैं समुद्री जीवन से खेल,
जो हो दाता उसे ही मार रहे हो
ऐसी भी क्या प्रगति जो,
अपना स्वच्छ आसमान और जमीन हार रहे हो,
बन्द कर दो अब ये कोहराम,
दो धरती को थोड़ा आराम,
जितने पेड़ काटो उससे दुगुना लगाओ,
अपने साथ साथ जानवरों का भी घर बसाओ,
अपनी सुविधाओं के साथ थोड़ा ध्यान
कचरों की सफाई पर भी दो,
कारखानों से धुआं और जल साफ कर के दो,
प्लास्टिक को न कर के चलो वही,
पुरानी माँ दादी के हाथ के बने रंग बिरंगे
कपड़ों वाले थैले अपनाएं,
जल में न डालें कचरा मछलियों को जीने
का माहौल बनाएं,
करें वायु प्रदूषण को कम ,
रहने दे हमारा ऊपर ओजोन का आवरण,
बहुत खूबसूरत हैं ध्रुवों पर जमी
सफेद दूधिया बर्फ उनकी सुंदरता बरकरार रहने दे,
आओ हवाओं को पौधों के टहनियों के संग बहने दे,
नदियों को रखें स्वच्छ जैसे गंगा उतरी है गंगोत्री में,
कचरा घर का हो या अस्पताल या सामुदायिक जगहों का,
कर के उनका उचित प्रबंधन ही करें उनका विलयन...
आओ हाथ से हाथ मिलाएं
धरा स्वर्ग है अपनी इसे वापस स्वर्ग ही बनाएं,
एक एक कर के भी अगर हम एक कदम बढ़ाएं,
यकीन मानिए,
हम और आप मिलकर ही
यह पर्यावरण स्वच्छ बनाएं..
आओ लेते हैं एक प्रण,
बचा के रखेंगे अपनी धरा का जीवन..

सुप्रिया "रानू"

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