न जाने कितने काम जो दो लोग
मिलकर करते हैं ,
जो कई लोग मिलकर करते हैं
उन सबको मैं अकेले कर लेती हूँ,
मैं महान हूँ
मुझे सारे रिश्ते निभा लेने हैं,
सब सुन लेना है सब सह लेना है,
मैं महान हूँ
मुझे कहीं भी बुरा नही बनना है,
मैं महान हूँ मुझे जीवन मे
सभी सामाजिक सांस्कृतिक पारवारिक नैतिक
दायित्व पूर्ण करने हैं,
लेकिन इस महान बनने में रह जाती है
एक घुटन,
एक चुभन,
एक न पूरी होने वाली उम्मीद,
एक अपूर्ण आश
कई टूटे सपने,
और मेरा आम बन पाना।
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