इसलिए नही की समाज परिवार में
उसका मान घट जाता,
बल्कि इसलिए कि लड़कियों
के लिए आज़ाद दुनिया का
पर्दा लिए ये नकाबपोश दुनिया मे,
उसकी ही तरह एक और लड़की
का पर कट जाता,
वो नही जनना चाहती थी एक लड़की,
वो नही चाहती थी
जैसे उसने बिना शरीर छुए
सिर्फ नज़रों की नग्नता को
अपनी देह पर महसूस किया है,
उससे जनी उसकी कली भी महसूस करे,
वो नही चाहती थी
जैसे उसने समाज परिवार का मुँह देख कर
अपना मुंह बंद कर लिया
उसकी बेटी भी बंद कर ले
माना वो सक्षम हो जाती,
उड़ बेटी मैं हूँ तेरे साथ ये कह पाती
पर जीवन मे परिस्थितियों को कहां तक रोक पाती
पितृसत्तात्मक चलती आ रही पीढ़ियों
में कभी न कभी तो कोई बाधा आ ही जाती,
जहां वो स्त्री है ये स्थिति बता ही जाती,
वो जनना नही चाहती एक और जननी।।
8 comments:
वो नही चाहती थी
जैसे उसने समाज परिवार का मुँह देख कर
अपना मुंह बंद कर लिया
उसकी बेटी भी बंद कर ले
.. यही तो हिम्मत बेटी में भरने की जरुरत है, जिस दिन हम उसे सक्षम बना देंगे, उसके बाद उसे किसी का मुंह ताकने की जरुरत न होगी, फिर वह किसी ऐरे -गैरे से डरने वाली भी न रहेगी , कमजोर को सब दबाते हैं उसपर धौंस जमाते हैं, सबल को कहने में दस बार सोचते हैं कोई भी, भले ही वह कितना भी गुंडा मवाली ही क्यों न हो
जी आदरणीया सही कहा आपने लेकिन सदियों से चली आ रही चीजों से बाहर निकलने में सदियां लगेंगी, बस हमें प्रयासरत रहना होगा ।।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 17 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत धन्यवाद पम्मी जी मैं उपस्थित रहूंगी
बेटियों को सक्षम बना भी दो तो एक डर बना ही रहता है ।।ज़रूरत है समाज की सोच को बदलने की ।
सक्षम से सक्षम लड़कियाँ मात खाती देखी जा रही आज के समय । एक माँ की जायज़ चिंता को व्यक्त किया है । भावर्ण अभिव्यक्ति ।
जी आदरणीया संगीता जी सही कहा आपने जब तक लोग मानसिक रूप से स्वीकार नही करेंगे परिस्थितियां नही बदल सकती औरसमय लगेगा अभी
वो नही जनना चाहती थी एक लड़की,इसलिए नही की समाज परिवार में उसका मान घट जाता,बल्कि इसलिए कि लड़कियों के लिए आज़ाद दुनिया का पर्दा लिए ये नकाबपोश दुनिया मे,उसकी ही तरह एक और लड़की का पर कट जाता,वो नही जनना चाहती थी... सार्थक रचना
सादर धन्यवाद शक्कू दी ।।
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