शब्दों,बातों में अहम झलक जा रहा,
और बातों ही बातों में
एक दूसरे से टकरा जा रहा,
इससे पहले की दोनों
अहम एक दूसरे से लड़ भिड़े,
और अपनी सारी हदें भूल जाएं,
अपने संस्कार भूल जाएं,
मन की हर कुंठा कुशब्दों में
अभिव्यक्त होने लगे,
मैं कुछ कहूँ तुम कुछ कहा,
और उन बातों की गांठ बांध
मन मे हम आहत हो एक दूसरे से
छुप के बच के रोये,
छोटी चीजों में उलझ कर
हम अपना परस्पर प्रेम खोये,
बातों ही बातों में एक दूसरे के प्रति
किये कर्तव्यों को एहसान की श्रेणी में रख दें,
एक दूसरे के निश्छल प्रेम को
स्वार्थ में परिणित कर दें,
ये मैं और तुम आजकल अक्सर
हर जगह मिल जाएंगे
सिर्फ अहम में टकराव हर दो लोगो मे मिल जाएंगे
चाहे ये दो दोस्त हों,
पति पत्नी हों,सास बहू हो,
बाप बेटा हो,भाई बहन हो,
हर रिश्ते के बीच मे ये एक
अहम की दीवार बन गयी है,
बातों ही बातों में
बातों के लिए रिश्तों में ठन गयी है,
सो आओ कुछ देर खामोश बैठे....
सुप्रिया 'रानू'
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