मटन,कटहल,न जाने कितने तरह के नमकीन
और न जाने कितने तरह की मिठाईयों से
जरा निकल जाना,
इस बार जरा होली रंगों से मनाना...
रसोई तो है तुम्हारे जिम्मे और आजीवन रहेगी
न खाने वालों की न बनानेवालों की इक्षाएँ मिटेंगी,
बस मिटेगा तो ये समय जो तुम्हारे हाथ कल नही लगने वाला,
पूरे साल रहेगी रसोई
बस पूरे साल तुम्हारे चेहरे पर नही ये रंग लगने वाला,
बच्चों की पिचकारी से भीगा लेना अपनी साड़ी,
गालों पे थोड़ा गुलाबी हाथों में पीला
माथे पर तेज लाल लगा लेना,
बस मन को मैला होने से बचा लेना,
परिंदो को कोई कहता नही उड़ जाने को,
तुम स्वयं ही स्वयं को मुक्त कर लेना,
इस बार होली रंगों में लिप्त कर लेना ।।
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