किसी की आंखें लगातार नम हो रही हैं,
न ही देखा किसी को जतन से
एक एक समान जोगते, सरियाते
नही कोई हर कमी पूरी कर देने वाला था,
दामाद को देने वाला समान भी
अपने हाथों ही खरीदा,
क्योंकि दामाद कहने वाली दामाद को सबसे ज्यादा लाड़
करने वाली सास के बगैर था वो घर,
बिन माँ की बेटी ,
बिन मन बिन श्रद्धा भी बियाह दी गयी,
सामाजिक परम्परों के निर्वाहन वाले लोग
सब विध पूरा कर दिए,
और विदा हो गयी इस घर से
हमेशा के लिए सँजो कर अपनी माँ की यादें,
ससुराल नाम ही है बहु के दुख
को दुख न समझना,
दुनिया में किसी की माँ के मरने का मातम और
दुख मन जाता
पर बहु की माँ नही है यह खयाल भी न आता ,
सारे नियम पूरा किये
सब व्यवस्थाएं की,और हर कुछ सीखा दिया था माँ की कमी ने
पर ससुराल में काम न करने वाली का ही नाम पाया,
क्योंकि उसके पीठ पर बोलनेवाली माँ न थी,
उसके गुणों अवगुणों को सहेजने वाली माँ न थी,
मायके से कोई कहने वाला न था मेरी बेटी है
उसके कान तरस गए सुनने को की
मेरी बेटी बहुत काम करती है,रूपवान है गुणवान है,
क्योंकि माँ तो अंधी होती है प्रेम में बच्चों के ।
माँ बिन मायके
न मिलता ससुराल ही
यही दुनिया की रीत है यही है यहां हाल ही
बिना माँ की बेटियां न ब्याही जाएं ,
क्योंकि समाज का हाल है बेहाल ही ...
5 comments:
नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (22-05-2021 ) को 'कोई रोटियों से खेलने चला है' (चर्चा अंक 4073) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सादर धन्यवाद आदरणीय रविन्द्र जी मैं उपस्थित रहूंगी ।
प्रिय सुप्रिया , आपकी भावपूर्ण रचना कहीं ना कहीं मन को भावुक और उद्वेलित कर गयी | बिन माँ की बेटी -- मात्र एक शब्द ही रौंगटे खड़े करने के लिए काफी है |बिन माँ के विदा होती बेटी की व्यथा नहीं ,अपितु अनगिन अनकही व्यथाएं हैं | हमारे समाज का उपेक्षापूर्ण रवैया इस पीड़ा को और बड़ा देता है | ये बात और है कि कई जगह बिन माँ की बेटी को ससुराल में बहुत स्नेह दिया जाता है-- ये सोचकर की ये माँ के स्नेह से वंचित रही है | पर ऐसे उदार तत्व बहुत कम हैं | माँ की शख्सियत बिटिया के समस्त अवगुण ढककर उन्हें गुणों की खान में बदलने में माहिर होती है | बहुत संवेदनशील रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं| |
माँ की कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता, कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें माँ का प्रेम कभी मिला ही नहीं, कुछ को बीच में ही छोड़ जाती है माँ, पर उनके साथ न होते हुए भी माँ एक संबल बनकर रहती है.
जी रेणु जी सत्य कहा आपने अगर समाज मे यह व्यवस्था हो जाये लोग एक दूसरे की कमी को महसूस करें और उसे पूरा करें तो जीवन स्वर्ग हो जाएगा लेकिन विडंबना यही है कि कोई उस गहराई तक समझ न पाता न महसूस कर पाता आपके शब्द मुझमे हमेशा उत्साह का संचार करते हैं
आदरणीया अनिता जी सादर आभार आपके शब्द बिल्कुल सत्य है
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