तुम बन पाते जो मेरा आसमान
तो मैं भी उड़ती,
तुम बन पाते जो चट्टान तो
उड़ती हवा बनके भी
तुम्हारे पास ठहरती,
तुम बन पाते जो समंदर
बनके नदी तुम्हारी बाँहो में बिखरती
तुम बन पाते जो मेरा श्रृंगार जेवर
तुम्हे अंग अंग में पहनती,
तुम बन पाते जो चाँद,
चांदनी बन के गगन पर पसरती
तुम बन पाते जो मेघ
तो बन के बून्द मैं धरा पर बरसती,
तुम बन पाते जो भँवरा,
कुसुम सी किसी बाग में खिलती,
तुम बन पाते जो बट वृक्ष,
बनकर बेल तुमसे लिपटती,
तुम घुल जाते जो हवाओं में तो,
सांसों में हर पल तुम्हे भरती,
तुम बन जाते जो मेरी नीव
तो एक सुनहरा घर बनती,
तुम बन पाते जो साथ मेरा
आजीवन सुख दुख में संग चलती,
बन पाते जो मेरे नैनो के अश्रु
तो दुख कोई भी हो बह जाती ,
बन पाते सच मे अर्धांग तो
गर्व से मैं भी अर्धांगिनी कहलाती,
पर तुम झूठे अहम,झूठे आडम्बरों
में डूबे रहे और जड़ बन बैठे खुद
को मर्द बता कर
और मैं वही दमित स्त्री बनूँ या
बन जाऊं सामाजिक वक्तव्यों का ठिकाना,
की संस्कार ही नही दिया इसे आया ही नही निभाना,
तुम ढल जाते तो मैं भी ढल जाती
तुम थोड़ा भी खड़े हो पाते तो
यकीन मानो पूरा जीवन मे चलते जाती,
पल भर की ही हों यह कहानी
पर छुपी होगी हर स्त्री की अनकही जुबानी,
परस्पर है प्रेम एकतरफा त्याग इसे बचा नही सकता,
प्रेम है सच्चा तो पिघलना आता है
अकड़ना कोई सिखा नही सकता....
Wednesday, July 18, 2018
मैं भी उड़ती
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
गौरैया
चहकती फुदकती मीठे मिश्री दानों के सरीखे आवाज़ गूंजता था तुम्हारे आने से बचपन की सुबह का हर साज़ घर के रोशनदान पंखे के ऊपरी हिस्से कभी दीवार ...
-
सच कह रहे हो ! प्रेम और अपार , उतर पाते हो क्या इस प्रेम में स्वार्थ के उस पार, उस वक़्त जब दूर कहीं अकेले देख रहे होते हो समुंदर की लहरें...
-
कैसे करे सफलता आलिंगन जब तक मन न बने स्व अवगुण का दर्पण। बंदिश मुक्त रखा बच्चों का बचपन, आस संजोए मात-पिता मन ही मन। उभरे बच्चों में हर तरह ...
-
चहकती फुदकती मीठे मिश्री दानों के सरीखे आवाज़ गूंजता था तुम्हारे आने से बचपन की सुबह का हर साज़ घर के रोशनदान पंखे के ऊपरी हिस्से कभी दीवार ...
No comments:
Post a Comment