कोई भरपेट खाकर भी
अनाज फेंक देता है,
कोई पाता ही नही
पेट भर पाने को भी अनाज,
मेहनत की कमी कहें या
सितारे बेमेल हैं,
या फिर ये कहें कि
ये किस्मत का खेल है।
कोई हर रोज फेंक देता है,
एक कपड़ा पहन कर,
किसी के पास तन ढंकने
को एक ही मिली चादर है,
कोई बैठ के ए.सी. में भी पसीने से तर है,
कोई बैठा कड़ी धूप में बेघर है,
मेहनत की कमी कहें
या सितारे बेमेल हैं,
या फिर ये कहें कि
ये किस्मत का खेल है।
हजारों मकान में भी
न जगह बन पाई है कुछ जरूरतमंदों की,
यहां बस पैसे का ही खेल है,
कोई सड़कों पे घर बना के गुजर कर रहा
कोई घरों का ही व्यापार करता है,
ये जो असमानताओं का दृश्य है,
मेहनत की कमी है,
या सितारे बेमेल हैं,
य फिर ये कहें
ये किस्मत का खेल है।
कहते हैं तुम दाता हो,
सबके पिता हो,
क्या तुम भी किस्मत में ही यकीन रखते हो,
तुम्हारी पत्थर की मूरत भी दूध से नहलाई जाती है,
और बच्चों का मुँह पानी से पोंछ
कर उनके बचपन बिताई जाती है,
मानवों के बस का तो नही ये
भेद मिटा पाना
आ जाओ इस सावन तुम ही
खुद को अर्पित दूध ही पिला दो
फुटपाथों अर बिलखते बच्चों को,
और बता दो हम इंसानो को
ये तकदीर भी तदबीर से बनती है,
हाथ की ताकत को ही किस्मत भी साथ देती है,
जी भर के कर लो अपनी खुद्दारी का इस्तेमाल
दे देगी किस्मत भी हीरा अपनी झोली खंगाल,
चलो इस भेद को मिटा डालें,
उन बदक़िस्मतों को भी
अब खुशकिस्मत बना डालें,
और तब कहें
न मेहनत की कमी
न सितारे बेमेल हैं,
हम सब हैं एक
और ईमान है एक
हम सबके किस्मत के
एक ही खेल हैं...
सुप्रिया "रानू"
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