उन 16 मजदूरों को जीने से,
क्या जरूरत है उनको जीने की,
जिनके जीने से किसी को फर्क नही पड़ना,
जिनके लिए दो वक्त की रोटी नही है किसी के पास
न कोई छत दे सकता है उन्हें,
उनलोगों को भी बचा लिया आज मृत्यु के न्याय ने,
जिन्हें डर था इनके घर पहुंचने से कोरोना फैलेगा,
वो नींद थकन की नही थी,
वो तो मौत ने उनको छलने का प्रपंच बनाया था,
नही तो उन्हें आदत है पेट पर कपड़ा बांधे
मीलो चल लेने की,
ये मृत्यु का न्याय था जीवन से उबरने को
वो नही देख सकते उनके लिए कितने लोगों ने
RIP लिखा,
वो सितारे नही थे भारत के,
वो तो जुगनू थे जो अपनी रोशनी लिए खत्म हो गए,
लेकिन दौर सितारों का है जुगनुओं का नही,
वो इस देश के भी नही रहे होंगे
तभी तो उनके लिए वायुयान की व्यवस्था नही हुई,
न वो अर्थव्यवस्था के भागीदार थे,
अब कोई ईंट ढोके 100 माले की
इमारत बना के देश के लिए थोड़े कुछ कर सकता है,
देश के वास्तविक हीरो तो वो हैं जो पैसे कमाना जानते हैं,
नाकि अपनी जान देने,
ये मृत्यु का न्याय था
जीने से बच लिया उनको
जिनके लिए जीने मरने का कोई भेद नही,
ये मृत्यु का न्याय था ....