Sunday, March 28, 2021

होली के रंग

पुआ दही बड़ा,गुझिया,गुलाब जामुन,
मटन,कटहल,न जाने कितने तरह के नमकीन
और न जाने कितने तरह की मिठाईयों से
जरा निकल जाना,
इस बार जरा होली रंगों से मनाना...
रसोई तो है तुम्हारे जिम्मे और आजीवन रहेगी
न खाने वालों की न बनानेवालों की इक्षाएँ मिटेंगी,
बस मिटेगा तो ये समय जो तुम्हारे हाथ कल नही लगने वाला,
पूरे साल रहेगी रसोई
बस पूरे साल तुम्हारे चेहरे पर नही ये रंग लगने वाला,
बच्चों की पिचकारी से भीगा लेना अपनी साड़ी,
गालों पे थोड़ा गुलाबी हाथों में पीला
माथे पर तेज लाल लगा लेना,
बस मन को मैला होने से बचा लेना,
परिंदो को कोई कहता नही उड़ जाने को,
तुम स्वयं ही स्वयं को मुक्त कर लेना,
इस बार होली रंगों में लिप्त कर लेना ।।

Monday, March 22, 2021

हम बिहार हैं

एक मैं में छुपा पूरा परिवार है,
मैं को हम बना देने वाले हम बिहार हैं ।

आत्मविश्वास अपरम्पार है,
मेहनत ही हमारे उपलब्धि का आधार है,
कहीं मीठा तो कहीं थोड़ा कड़वा हमारा व्यवहार है,

भोजपुरी,मैथिली,मगही,तिरहुत,अंग,संस्कृतियों से सरोकार है,
पारस्परिक प्रेम में त्याग करना ही हमारा कारोबार है,
एक अकेला इंसान भाई बहन के परिवार को भी ढो लेता है
किसी अनजान की मंजिल ( शवयात्रा) में भी रो लेता है,

दिखने में भले हम बेबस और लाचार हैं,
कर्मठता कूट के भरा है, हम में
एक हम में छुपने वाला पूरा परिवार है,
हम ठेठ,गवार बिहार हैं ।।

देश विदेश में प्रवासियों की संख्या का मूलतः आधार हैं,
लिट्टी चोखा और दही चूड़ा पर चलता हमारा आहार है,
पढ़ाई, कॉम्पिटिशन,एग्जाम निकालते बेशुमार हैं,
तेज़,और काबिल लोग का भंडार हैं,
अस्ताचल सूर्य को भी हमारा नमस्कार है,
हम बिहारी छठ का त्योहार हैं,
मैं को हम बना देने वाले हम बिहार हैं ।।

दिल मे आत्मविश्वास ,प्रेम ,सौहाद्र , अपनेपन का भंडार है,
किसी भी क्षेत्र में हों हम एक - एक 
बुद्ध, महावीर,गुरुगोविंद,के अवतार हैं 
मैं को हम बना देने वाले हम बिहार हैं
हार नही मानते कभी भी,
साहस से हर जंग जीतने को तैयार हैं,
हम स्वाभिमानी,कलाप्रेमी,आज्ञाकारी,संस्कारी,पढ़ाकू
जम कर खाने वाले 
भारत का एक अद्भुत हिस्सा गौरवमयी बिहार हैं ।।।
सुप्रिया"रानू"

Monday, March 15, 2021

जननी

वो नही जनना चाहती थी एक लड़की,
इसलिए नही की समाज परिवार में 
उसका मान घट जाता,
बल्कि इसलिए कि लड़कियों 
के लिए आज़ाद दुनिया का 
पर्दा लिए ये नकाबपोश दुनिया मे,
उसकी ही तरह एक और लड़की 
का पर कट जाता,
वो नही जनना चाहती थी एक लड़की,
वो नही चाहती थी 
जैसे उसने बिना शरीर छुए
सिर्फ नज़रों की नग्नता को
अपनी देह पर महसूस किया है,
उससे जनी उसकी कली भी महसूस करे,
वो नही चाहती थी
जैसे उसने समाज परिवार का मुँह देख कर
अपना मुंह बंद कर लिया 
उसकी बेटी भी बंद कर ले
माना वो सक्षम हो जाती,
उड़ बेटी मैं हूँ तेरे साथ ये कह पाती
पर जीवन मे परिस्थितियों को कहां तक रोक पाती
पितृसत्तात्मक चलती आ रही पीढ़ियों 
में कभी न कभी तो कोई बाधा आ ही जाती,
जहां वो स्त्री है ये स्थिति बता ही जाती,
वो जनना नही चाहती एक और जननी।।

गौरैया

चहकती फुदकती मीठे मिश्री दानों के  सरीखे आवाज़ गूंजता था तुम्हारे आने से बचपन की सुबह का हर साज़ घर के रोशनदान पंखे के ऊपरी हिस्से  कभी दीवार ...