Friday, May 8, 2020

मृत्यु का न्याय

आज मौत ने बचा लिया 
उन 16 मजदूरों को जीने से,
क्या जरूरत है उनको जीने की,
जिनके जीने से किसी को फर्क नही पड़ना,
जिनके लिए दो वक्त की रोटी नही है किसी के पास
न कोई छत दे सकता है उन्हें,
उनलोगों को भी बचा लिया आज मृत्यु के न्याय ने,
जिन्हें डर था इनके घर पहुंचने से कोरोना फैलेगा,
वो नींद थकन की नही थी,
वो तो मौत ने उनको छलने का प्रपंच बनाया था,
नही तो उन्हें आदत है पेट पर कपड़ा बांधे
मीलो चल लेने की,
ये मृत्यु का न्याय था जीवन से उबरने को
वो नही देख सकते उनके लिए कितने लोगों ने 
RIP  लिखा,
वो सितारे नही थे भारत के,
वो तो जुगनू थे जो अपनी रोशनी लिए खत्म हो गए,
लेकिन दौर सितारों का है जुगनुओं का नही,
वो इस देश के भी नही रहे होंगे 
तभी तो उनके लिए वायुयान की व्यवस्था नही हुई,
न वो अर्थव्यवस्था के भागीदार थे,
अब कोई ईंट ढोके 100 माले की 
इमारत बना के देश के लिए थोड़े कुछ कर सकता है,
देश के वास्तविक हीरो तो वो हैं जो पैसे कमाना जानते हैं,
नाकि अपनी जान देने,
ये मृत्यु का न्याय था 
जीने से बच लिया उनको 
जिनके लिए जीने मरने का कोई भेद नही,
ये मृत्यु का न्याय था ....

Friday, May 1, 2020

मजदूर नही मजबूर

हम मजदूर थे,
हर छोटे काम से बड़े बड़े कामो 
को अंजाम देनेवाले 
कोरोना ने हमे असल मतलब समझा दिया,
मजदूर से ज्यादा हमे मजबूर बना दिया ।।
बहुमंजिला इमारतों को बनानेवालों 
के लिए आज दो गज ज़मीन नही,
अनाजों को धोने साफ करने वालों के लिए 
आज 100 ग्राम अनाज नही,
जो लाखों लोगों के तन ढकने को 
घंटो मिलों में काम करते हैं 
आज  उनके लिए 2 मीटर कपड़े कम पड़ गए।
न जाने कितने रोड बना डाले,
और आज उन्ही पर पैदल चलने को मजबूर,
सच ही दिखाया तुमने कोरोना 
हम मजदूर नही मजबूर हैं
बेबसी ही है हमारी जो 
हम घर से दूर हैं,
कह रहे सब हैम बीमारी फैलाएंगे,
नही जानते हम कब हमे कोरोना हो जाये,
हमारे पास नही है मास्क न सैनीटाइजर
बस एक झलक देख लें घरवालों के,
चुम लें अपनी मिट्टी,
इसी धुन में तो घंटो पैदल चलते जाएंगे।।
किसे दिखाए अपनी व्यथा
लक्ष्मी आयी है घर मे और हम यहां परदेश में,
चेहरा तक न देख पाए हैं
अपने ओलाद के,
हम भी इंसान हैं हमारे भी दिल है,
पत्थर तोड़ के हम नही हो गए हैं
फौलाद के,
किस बात का मजदूर दिवस 
जब हम मजदूर रह ही नही गए,
मना लो मजबूर दिवस 
हम मजबूरों के नाम ।।।

गौरैया

चहकती फुदकती मीठे मिश्री दानों के  सरीखे आवाज़ गूंजता था तुम्हारे आने से बचपन की सुबह का हर साज़ घर के रोशनदान पंखे के ऊपरी हिस्से  कभी दीवार ...