Wednesday, December 12, 2018

मैं शिशिर की सर्द रातों सी

मैं शिशिर की सर्द रातों सी,
तुम ओश को पिघलाते नर्म
गुनगुनी धूप सरीखे...

मैं शिशिर में फैले
घने गहरे कोहरे की तरह,
तुम खिलते सरसो के टेसू
मैं शिशिर की पाले और ओले,
तुम आँख मिचते खिलते
छुपते सूरज से...
मैं शिशिर की ठंडी सर्द
हवाओं सी
तुम गर्म शाल की गर्मी से...
मैं तिल और मूंगफलियों से,
तुम चाशनी सरीखे
मेरी मिठाश समेटने वाले,

मैं शिशिर की सर्द रातों सी..
तुम ओश को पिघलाते
नर्म गुनगुनी धूप सरीखे..

मैं उन्मुक्त आकाश सी
तुम सीमाओं की प्राचीर बनो,
मैं जहाँ भी थक जाऊँ राहों में,
तुम मेरे मन का धीर बनो,
मैं क्षण क्षण में खो भी जाऊँ,
तो तुम साथ अपना चिर रखो,
मैं सज्जा तो तुम
उस ओर खिलने वाले रूप सरीखे,
मैं शिशिर की सार्ड रातों सी,
तुम खिलते नर्म
गुनगुनी धूप सरीखे...

सुप्रिया "रानू"

Monday, December 3, 2018

शब्द लिख देते जो भाव सारे

शब्द लिख देते जो भाव सारे,
प्रफुल्लित मन
और हृदय के घाव सारे,
फिर अश्रुओं का स्थान क्या रह जाता,
लिख डालते जो दर्द सारे
तो फिर भावों का मान क्या रह जाता,

हो जाता है असमर्थ लेखन भी
कुछ भावों को व्यक्त कर पाने में,
कैसे लिखूं ठंड की नरम से धूप
की हल्की गरम नर्माहट,
कैसे लिखूं अंधेरों से झांकते सूरज
की ललिमाओं की हल्की सी आहट,
कैसे लिख दें शब्दों की वर्णमाला
नरम कोमल दुभों पर ओशों के बिखर जाने की चाहत,

शब्द लिख देते जो...

कैसे लिख दूँ, इंतज़ार में ताकते नयन
या फिर मिलान की खुशी के आँसू की चमक
कैसे बाँधू शब्दों में किसी के न होने
और लौट के न आने का गम
कैसे उत्तर दूँ शब्दों ये आंखें नम,
शब्द बेशक बेजान हो जाते हैं कभी कभी,
पर भुला भी दूँ कैसे
शब्द जो उतर जाते हैं दिल मे
शब्द जो बाह जाते हैं आंखों से
शब्द जो कह जाते हैं अनकहे बात सारे..

शब्द जो लिख....
सुप्रिया"रानू"

गौरैया

चहकती फुदकती मीठे मिश्री दानों के  सरीखे आवाज़ गूंजता था तुम्हारे आने से बचपन की सुबह का हर साज़ घर के रोशनदान पंखे के ऊपरी हिस्से  कभी दीवार ...