Wednesday, July 31, 2019

मन ही तो है

मैं लाख मनाती हूँ,
कभी थम जाता है,
तो कभी ज़िद पे अड़ जाता है
मन ही तो है,
जानता है कहने को हैं
बस अपने अपने होने का
असल फ़र्ज़ कौन निभाता है,
सौ नुकसान झेल कर
न जाने क्यों एक और झेलने में
उबल आता है
मन ही तो है,
जानता है सारी चाहते पूरी
नही होती ज़िन्दगी में
सारे हालातों से समझौते करता है,
समझौतों की फिराक में कभी
उबल ही जाता है
मन ही तो है,
जानता है,ज़िन्दगी आसान नही है
हर सफर कांटों पे चलता है,
पर हर वक़्त जब कांटे ही मिले
तब तो फूल को कहना बनता है
क्या करे फुट ही आता है
मन ही तो है,
जानता है माँ बाप नही नन सकता कोई भी
फिर क्यों बेमतलब
लोग अपनी अदाकारी का पर्दा डालते हैं
उबल आता है
मन ही तो है,
मैं लाख मनाती हूँ,
कभी मान जाता है
तो कभी एकदम से अड़ ही जाता है मन ही तो है.....

सुप्रिया "रानू"

Monday, July 22, 2019

एहसास

ये न शब्दों में कह पाती हूँ,
न अश्क़ों में रख पाती हूँ,
मन से महसूस कर के
मन के ही कोने में धर जाती हूँ,
ये मेरे अहसासों की दास्तान है
जुबान से कहाँ बयान है।

बचपन मे खिलौनों की ज़िद
और उन्हें पाने के बाद का एहसास,
बारिश में भीगने की ज़िद
और जी भर भीग लेने का एहसास,
छोटी छोटी बातों पर झगड़ना
और फिर रूठे दोस्तों के मन जाने का एहसास,
मन के एक कोने में धर रखा है सबको जतन से,
ये न होंगे बयान अब कथन से ।

ये मेरे एहसासों की दास्तान है.....

यौवन और उसके तेज़ तेवर
जो चीज़ पाना हो मुश्किल उसकी ही ज़िद
और लगा देना जी जान
थोड़ी सी ताकत थोड़ा सा आन
पिघल जाना पल में
और ठन जाना बेबाक,
पहले प्यार की खुमारी
और फिर उसे भूल जाने में गुजरी उम्र सारी,
एहसासों का ही तो ये यौवन है,
धड़कता इनकी यादों में जीवन है

ये मेरे एहसासों की दास्तान है....

खेल कूद में गिरकर छिले घुटनो का दर्द,
प्रेम की मात में टूटे हृदय का दर्द,
असफलताओं में खोई सफलताओं की कोशिशों के दर्द,
छूते छूते छुटे हुए आसमान का दर्द,
ज़िन्दगी वक़्त,हालात,रिश्तों से मिले
दर्द और ताउम्र दर्दों की सौगात का दर्द
एहसास ही तो है सबका
न कोई मात्रा न कोई हर्फ़
न कोई नज़्म न कोई कविता
उभर पाती हैं इन एहसासों की जुबान को
कैसे लिख दूँ मैं एहसासों के दास्तान को

ये मेरे एहसासों की दास्तान है,
मन के एक कोने में धर रखा है जतन से
ये अब न बयान हो पाएंगे किसी कथन से

सुप्रिया "रानू"

Sunday, July 7, 2019

गर्भपात: एक अन्तःव्यथा

न जला पायी न दफना पायी,
तुमने जन्म भी नही लिया,
और मृत्यु के ग्रास में समा गए,
सोच कर सोचती रह जाती हूँ,
शब्दों में अपनी व्यथा न कह पाती हूँ,
वो जो सपने और उम्मीदें थी तुमसे जुड़ गई
कैसे तोड़ दूँ उनकी एक एक कड़ी,
लगा के फिर कोई उम्मीद नई ।
अभी का दौर और जीव विज्ञान की पढ़ाई,
तुम्हारे पल पल की वृद्धि की खबर मैं रख पाई,
आज वही अंतर्द्वंद की स्थिति है,
टुकड़ो और बूंदो में देखना तुम्हे ही परिस्थिति है
मन व्यथित होके बस इतना ही कह पता है,
न जला पायी न दफना पायी,
बून्द बून्द रक्त से सींचा था जैसे,
वैसे ही बून्द बून्द तुम्हारे अस्तित्व को बहा पायी।
कैसे कह दूं कि तुम मेरे थे ही नही,
और कैसे मान लूं की यह नियति का खेल है,
कहीं न कहीं मेरी ही कोई गलती रही होगी
जो एक नन्ही जान के विकसित दौर को न बचा पायी ।
अंतः व्यथा के ये अनगिनत पहलू कोई न समझ पायेगा,
गलती होगी कोई तुममे यही हर कोई कह पायेगा,
पर एक माँ का ही मन जानता है
वो जन्म के पश्चात नही अपितु
गर्भधान से ही माँ बन जाती है,
कोइ दिखता भी नही और वो उसके सपने सजाती है,
दुविधा बस यही मन को सता गयी
तुम्हे देखा भी नही और तुमसे दूर हो गयी।
न जला पायी न दफना पायी,
ऐसी अभागन माँ है जो माँ वही न कहला पायी ।
सुप्रिया"रानू"

गौरैया

चहकती फुदकती मीठे मिश्री दानों के  सरीखे आवाज़ गूंजता था तुम्हारे आने से बचपन की सुबह का हर साज़ घर के रोशनदान पंखे के ऊपरी हिस्से  कभी दीवार ...