Friday, May 1, 2020

मजदूर नही मजबूर

हम मजदूर थे,
हर छोटे काम से बड़े बड़े कामो 
को अंजाम देनेवाले 
कोरोना ने हमे असल मतलब समझा दिया,
मजदूर से ज्यादा हमे मजबूर बना दिया ।।
बहुमंजिला इमारतों को बनानेवालों 
के लिए आज दो गज ज़मीन नही,
अनाजों को धोने साफ करने वालों के लिए 
आज 100 ग्राम अनाज नही,
जो लाखों लोगों के तन ढकने को 
घंटो मिलों में काम करते हैं 
आज  उनके लिए 2 मीटर कपड़े कम पड़ गए।
न जाने कितने रोड बना डाले,
और आज उन्ही पर पैदल चलने को मजबूर,
सच ही दिखाया तुमने कोरोना 
हम मजदूर नही मजबूर हैं
बेबसी ही है हमारी जो 
हम घर से दूर हैं,
कह रहे सब हैम बीमारी फैलाएंगे,
नही जानते हम कब हमे कोरोना हो जाये,
हमारे पास नही है मास्क न सैनीटाइजर
बस एक झलक देख लें घरवालों के,
चुम लें अपनी मिट्टी,
इसी धुन में तो घंटो पैदल चलते जाएंगे।।
किसे दिखाए अपनी व्यथा
लक्ष्मी आयी है घर मे और हम यहां परदेश में,
चेहरा तक न देख पाए हैं
अपने ओलाद के,
हम भी इंसान हैं हमारे भी दिल है,
पत्थर तोड़ के हम नही हो गए हैं
फौलाद के,
किस बात का मजदूर दिवस 
जब हम मजदूर रह ही नही गए,
मना लो मजबूर दिवस 
हम मजबूरों के नाम ।।।

3 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर अभिव्यक्ति

Supriya pathak " ranu" said...

सादर आभार आदरणीय

एक नई सोच said...

खूब लिखा है आपने

इस कोरोना काल में कायका मजदूर दिवस, अब तो यह मजबूर दिवस बन गया है ।

एक मजदूर की ब्यथा का सजीव चित्रण।

🙏🏻💐💐🙏🏻

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