मत करना मुझे तरस खा कर प्यार,
मुझे लक्ष्मी और सरस्वती कह कर
मत करना अनचाहा दुलार,
मैं जो हूँ, वही स्वीकार पाओ,
तभी बढ़ाना हाथ दुलार का,
फिर भी मैं अस्तित्व में रहूंगी सदा
बिना किसी के प्यार के आधार का ।
समझ पाओ मुझे अपना अंश,
तभी अपनाना,
जैसे बेटे को समझते हो बुढ़ापे का सहारा
मुझे भी समझ पाओ तभी बढ़ाना प्यार हाथ का,
नही तो सक्षम हूँ मैं जीवित रहने में बिना प्यार किसी साथ का,
जितना अंश आपका बेटे के रगों में है,
उतना ही बेटी के भी,
चीनी के कणों के आकार भले अलग हो,
पर घोलते सब मिठास ही हैं,
समझ पाओ वैसे मुझे भी अपना अंश
तो ही अपनाना,
मुझे भाई से आगे नही जाना
न उसके पीछे घूमना है,
मेरा अस्तित्व एकल है,
मुझे बस अपने हिस्से का आसमान चूमना है।
न कोई अभियान न कोई फरमान चलाओ,
करना हो कुछ तो ऐसा कर जाओ,
कोई भी नारी गर्भधारण कर मन के इस दुविधा से
निकल जाए,
की आनेवाला बच्चा लड़की आये या लड़का आये,
प्रकृति ने ही अलग किया है,
अलग ही रहने ददन,
जिसकी जो प्रकृति है उसी में जीने दें,
हर माँ का इतना ही हो सोचना,
मुझे लड़की को लड़का न बनाना,
न लड़को से आगे ले जाना,
बस दे देना है उसका आसमान उसे,
जहां खुलकर जिये वो,और जान जाए वो आपन अस्तित्व बनाना