किसी की आंखें लगातार नम हो रही हैं,
न ही देखा किसी को जतन से
एक एक समान जोगते, सरियाते
नही कोई हर कमी पूरी कर देने वाला था,
दामाद को देने वाला समान भी
अपने हाथों ही खरीदा,
क्योंकि दामाद कहने वाली दामाद को सबसे ज्यादा लाड़
करने वाली सास के बगैर था वो घर,
बिन माँ की बेटी ,
बिन मन बिन श्रद्धा भी बियाह दी गयी,
सामाजिक परम्परों के निर्वाहन वाले लोग
सब विध पूरा कर दिए,
और विदा हो गयी इस घर से
हमेशा के लिए सँजो कर अपनी माँ की यादें,
ससुराल नाम ही है बहु के दुख
को दुख न समझना,
दुनिया में किसी की माँ के मरने का मातम और
दुख मन जाता
पर बहु की माँ नही है यह खयाल भी न आता ,
सारे नियम पूरा किये
सब व्यवस्थाएं की,और हर कुछ सीखा दिया था माँ की कमी ने
पर ससुराल में काम न करने वाली का ही नाम पाया,
क्योंकि उसके पीठ पर बोलनेवाली माँ न थी,
उसके गुणों अवगुणों को सहेजने वाली माँ न थी,
मायके से कोई कहने वाला न था मेरी बेटी है
उसके कान तरस गए सुनने को की
मेरी बेटी बहुत काम करती है,रूपवान है गुणवान है,
क्योंकि माँ तो अंधी होती है प्रेम में बच्चों के ।
माँ बिन मायके
न मिलता ससुराल ही
यही दुनिया की रीत है यही है यहां हाल ही
बिना माँ की बेटियां न ब्याही जाएं ,
क्योंकि समाज का हाल है बेहाल ही ...