असीम कुछ भी अस्तित्व में नही होता,
वह कल्पना मात्र ही है,यथार्थ से परे,
प्रेम में सदैव तय करना सीमाएं,
अनुमति किस बात की कब तक लेनी है:
अनुमति स्पर्श की,
अनुमति व्यंग्य की,
अनुमति हास्य की,
अनुमति अपनी जड़ों के सानिध्य की,
अनुमति समाज के नियमों की,
जाना कहाँ तक है :
त्याग में खुद को गंवाए बिना,
समर्पण में स्वयं को लुटाए बिना,
आदर देने में निरादर हुए बिना,
सेवा करने में खुद को शोषित किये बिना,
स्वार्थ में दूसरों के हित गंवाए बिना,
स्वतंत्र कितना होना है,
अपने पंख फैलाने तक,
कुरीतियों को तोड़ने तक... या,
नई कुरीतियां लाने तक,
प्रकृति प्रदत दो अस्तित्व मिटाने तक...
प्रेम सीमित रखना सदा की ,
प्रेम दो लोगो के बीच
उनके वास्तविक अस्तित्व को संजोए
प्रेम अपने अस्तित्व को बचाये रखे।