जड़ों से
ससुराल और मायके हर जगह
कुछेक बातों के लिए
तो कभी कुछेक आघातों के लिए,
कभी असीम प्रेम बना कारण
तो कभी चुप रह जाना हुआ वजह,
कभी सह जाना दुश्वार था
कभी ना कह पाना ।
लेकिन जनना हमारे खून से लेकर रूह तक मे है,
हममें कोंपलें फूट आती हैं,
हर बार जब मायके
का एक तिनका भी आकर स्पर्श कर जाए,
जिम्मेवारी एक भी गठरी
ससुराल से मिल जाये,
हम सब बिसरा कर फिर से खिल जाती हैं,
और महका देती हैं
घर आँगन पीहर से लेकर पी के घर तक का।
हम बेटियाँ धान हैं उगाई जाती हैं,
फिर जड़ से उखाड़ कर लगाई जाती हैं
फिर भी मन मन भर चावल उगा देती हैं।
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