शब्दों से हंस लेती हूँ,
शब्दों का अश्क़ बना
दुख बनकर बह लेती हूं
शब्दों से सजती
शब्दों में सवरती हूँ,
शब्दों में भाव भरती हूँ,
शब्दों में ही दिखती हूँ,
शब्दों में छुप जाती हूँ
जो कह पाती शब्दों की ओट में,
शब्दों में ही चुप हो जाती हूँ,
शब्दों में प्रेम,
शब्दों में साथी,
शब्दों में शांति पाती हूँ,
शब्दों में संतुष्टि,
उड़ने का जब भी जी होता है,
बांध शब्दों के पर
उन्मुक्त गगन उड़ आती हूँ,
शब्दों में खुशी,
शब्दों में ही विरह राग भी गाती हूँ,
दूर होके दुनिया से भी,
शब्दों की दुनिया मे खो जाती हूँ,
आकारों के कंधों पर सर रख कर
इकार की छाँव में ठंडी हवा पाती हूँ,
मात्राओं का श्रृंगार कर खुद पर इतराती हूँ,
शब्दों में ही अपनी जीवन नाव बहती हूँ
मन भर जाए जब भावों से
सुख हो या फिर असीम दुख
शब्दों को बना गंगाजल नहाती हूँ...
सुप्रिया"रानू"
Friday, May 11, 2018
शब्दों का गंगाजल
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
विस्मृति
मैं विस्मृत कर देना चाहती हूँ अपने जीवन मे अनुभूत सभी कड़वे स्वादों को जो किसी न किसी रिश्ते से मिले, इसलिए नही की उन्हें माफ कर दिया, अपितु ...
-
चहकती फुदकती मीठे मिश्री दानों के सरीखे आवाज़ गूंजता था तुम्हारे आने से बचपन की सुबह का हर साज़ घर के रोशनदान पंखे के ऊपरी हिस्से कभी दीवार ...
-
कैसे करे सफलता आलिंगन जब तक मन न बने स्व अवगुण का दर्पण। बंदिश मुक्त रखा बच्चों का बचपन, आस संजोए मात-पिता मन ही मन। उभरे बच्चों में हर तरह ...
-
होती हैं थोड़ी अल्हड़,थोड़ी बिंदास घूमती रहती हैं आजीवन धुरी बन कर अपनी माँ के आसपास माँ की अनुपस्थिति, और जिम्मेवारियों का बोझ बना देता है उ...
No comments:
Post a Comment