ना पुकारा है,ना पुकारूँगी,
ना रोका है,ना रोकूंगी,
तुम चलना निरंतर अपनी राह में,
मैं कभी भी पीछे से
ना आवाज़ दूंगी...,
हाँ पर
कभी जो थम जाओ,
हो जाओ अधीर,
रास्तों की थकन बना दे गंभीर,
एकाकीपन का लम्हा- लम्हा
तुम्हे दे अंदर तक चीर
ठिठक कर सुन लेना,
अपनी अंतर्ध्वनि
हर पल तुम्हारे मन से जोड़कर
खुद का मन मैं तुम्हारे
एकलव्य को भी मेरे साथ का साज़ दूंगी ..
तुम चलना निरंतर अपनी राह में,
मैं कभी भी तुम्हे पीछे से
ना आवाज़ दूंगी...
तुम भले हीं नयन मूँद रहो,
मेरे होने न होने के एहसास से परे,
तुम जीना एकाकी जीवन,
मैं सन्यास में भी अपने मन
को तुम्हारे नाम का वैराग दूँगी
ठिठक कर सुन लेना अपनी अंतर्ध्वनि
हर क्षण मैं तुम्हारे मन के संगीत को
मैं एक नया राग दूँगी
तुम चलना निरंतर .....
तुमने रंग चुना है सफेद
लाल या सप्तरंगों का एकल संयोग,
तुम ओढ़े रहना कभी धरती की हरियाली,
कभी आसमानी चादर गगन का,
जब भी मन हो जाये बोझिल
बस ठहर जाना पल भर को,
ठिठक कर टटोल लेना,
अपना अंतर्मन,
मेरा अंतर्मन तुम्हे हर रंग का फाग देगा
मैं कहीं भी रहूँ मेरा जीवन
तुम्हारे जीवन को निरंतर राग देगा
सुप्रिया "रानू"
No comments:
Post a Comment