इस बार ईदी खुदा से चाहिए,
बस थोडी सी रहमत,
कि इंसानियत को मिल जाए थोडी सी अज़मत....
ये जो खून का सिलसिला है
थम जाए अब,
ये जो संकरे से हैं ख्याल
थोडे मुफासिल हो जाएं...
बस ये दीवाली से दीप जलें,
और सेवईयों का जाय़का एकसाथ हो,
हरा,लाल,गेरूआ,सब रंग जाएं
एक ही रंग,
ये जो दौर है जहाँ,
मजहब बताता है,
कि दरिंदगी किसकी है,
ये जो रूत है जहाँ यकीन
इंसान की नीयत से
ज्यादा उसके बंदगी के तरीकों से है,
बस ये थम जाए,
ये जो रूहों से उपर
मज़हब के परचम हैं।
बस वो थोडा झुक जाए,
इंसान, इंसान समझ सके
एक दूसरे को बस इतनी समझ आ जाए,
इतनी सी नेमत इस ईद मुझे मिल जाए...
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