उमंगो की धरा पर,
इच्छाओं के बीज पडे होंगें
सपने बुनते नयन
कितनी रात जगे होंगें,
नूतन भविष्य के
एक - एक तिनके
रखें होंगे सहेज कर,
तब जाकर हृदय में,
पनपा होगा अंकुर प्रेम का,
त्याग के भाव,
समर्पण की श्रद्धा,
एक दूसरे के लिए
कुछ भी कर गुजरने की ललक जगी होगी,
थोड़ी अगन इधर ,थोड़ी अगन उधर भी लगी होगी,
मन के मंदिर में
स्थापना हुई होगी
किसी की जो देवतुल्य दिखते होंगे,
तभी जाकर हृदय में पनपा होगा
अंकुर प्रेम का...
संग हंसने संग रोने के वादे,
एक दूसरे का सुख दुख बांटने का जज़्बा,
एक दूसरे के कदम से कदम मिला कर चलने के कसमे,
एक दूसरे के लिए खुद को भुला देना
एक दूसरे में ही खुद को पा जाना,
होंगे न जाने कितने अंतर्मन के सागर की लहरों के झकोरे,
न जाने कितने उठते दबते ज्वर
तब जाकर हृदय में पनपा होगा
अंकुर प्रेम का....
सुप्रिया "रानू"
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