जीवन में कुछ ऐसे क्षण भी आते हैं,
सारे हल समझ मे आते हैं,
हम फिर भी मौन रह जाते हैं...
मंज़िल दिखती है,
राहों का पता होता है,
ऊर्जा भी मन मे भरा होता है,
फिर भी न जाने क्यों
राहों पर अडिग से हमारा पावँ धरा होता है,
चलती राहों पर भी गौण रह जाते हैं..
जीवन मे कुछ ऐसे.....
रिश्तों का भरा बाजार होता है,
स्व में भरा हर व्यवहार होता है,
फिर भी न जाने क्यों
आसपास खड़े लोग अचानक
अपनेपन की परिभाषा में विक्षिप्त हो जाते हैं,
और फिर मन पूछता है
ये अपनो में जमात में सब कौन कौन हो जाते है..
जीवन मे कुछ ऐसे ....
सामाजिक धार्मिक पारिवारिक
और न जाने कितने आबन्धों में समेटे
खुद के अस्तित्व को ढोते ढोते ,
जिम्मेवारियों के निर्वहन,
खुद के सपनो की कुचलन,
प्रेम की अतृप्ति और न जाने कितने सारे
दबे अरमानो तले हम
बाहर से वक्ता और अंतर्मन में
मौन हो जाते हैं...
कभी सुकून पाओ तो सोचना
ये औरों के लिए हम कौन कौन
और कौन हो जाते हैं
खुद को भूला के
स्व अस्तित्व को गौण कर जाते हैं...
जीवन मे ....
सुप्रिया 'रानू'
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