Saturday, October 27, 2018

बड़े लोग

मिलती है मिठास वो
झोपड़ी में रखे मिट्टी
के घड़े के पानी से जो,
प्यास कहाँ बुझ पाती है,
अदब से दिए वो
बर्फ वाले पानी से...
वो प्रेम वो समर्पण कहाँ से लाएंगे..
जिस दिन ये सारे मिट्टी के घर
पक्कों में बदल जाएंगे...
दौलत में अदब है,
लहजा है,तौर और तरीका है,
सुंदर बनावटी चेहरे और सुंदर
बनावटी सजावट..,
गरीबी ने जतन कर रखी है
प्रेम भाव और त्याग अब भी..
यूँही उग जाने वाली दुब
की ठंडक कहाँ से लाएंगे,
ये जो सड़कें सारी जब चौड़ी हो जाएंगे..
वो प्रेम वो समर्पण....
जतन से रोपे पौधों को अब कहाँ
गाय बकरी और भेंड़ कहा पाएंगे
अब वो लकड़ियों की आड़ वाली
दीवार नही,
अब तो पक्की दीवारों से
बस कुत्ते इंसानो को भी देख भौंकते रह जाएंगे...
धूल पत्थर और ईंट के रास्तों पे
जो नंगे पैर दौड़ जाते थे कभी,
अब तो चप्पलों के साथ भी कहते चुभ जाएंगे..
वो समर्पण....
मोमबत्तियों न जाने कितनी लाइटों में
अब वो मिट्टी के दिये कहाँ से लाएंगे
मिट्टी के बर्तन और मिट्टी के खरौंदों
को कहां जुटा पायेंगे,
दीवाली की मिठाईयों में वो मिठास कहाँ से लाएंगे,
चम्मच से खाने की आदतों में,
उंगलियों में लिपटा खाने का स्वाद कहाँ से चख पाएंगे,
वो समर्पण ....
अदब के इस जीवन मे बस अदब ही सीखते
और सिखाते रह जाएंगे..
काश बन जाते बेअदब थोड़ा तो जीवन जी जाएंगे
बेपरवाह जो प्रेम का रस है तभी प्रेम से पी पाएंगे
दिखावे की इस जहां में रहें छोटे ही रहे,
न बने बड़े लोग..
प्रेम से प्रेम का सदा होता रहे संयोग...
सुप्रिया"रानू"

गौरैया

चहकती फुदकती मीठे मिश्री दानों के  सरीखे आवाज़ गूंजता था तुम्हारे आने से बचपन की सुबह का हर साज़ घर के रोशनदान पंखे के ऊपरी हिस्से  कभी दीवार ...