अभी मेरे कान नाक और आंखे भी ढंग से न बनी थी,
धड़कने धीरे धीरे चल रही थी,
अभी मैं बन ही रही थी,
की माँ के गर्भ से बाहर
कुछ हलचले चल रही थी,
सब जानना चाहते थे कि
मैं गुड़िया हूँ या कुलदीपक,
माँ कहती हैं कि
बड़ी मुश्किल से बचा लिया मुझे,
दुनिया मे आयी
रंगबिरंगे लोग,सोच दायरे
सपने न जाने कितनी चीजें
देखी धीरे धीरे जीवन
के पड़ावों को पार करती रही,
आधुनिकता के बदलते आयामों के साथ,
रूढ़िवादिता और सामाजिक दायरों
का सामंजस्य करते रही
कभी सपनो को मार दिया कभी
सबकी मनमानी को सपनो के लिए मार दिया
आज उसी मोड़ के खड़ी हूँ
कोख में लिए एक नन्ही जान को
जो कहती है कि मुझे आना है दुनिया मे
और दुनिया जो मेरे आसपास है वो कह रही
नही आना है उसे दुनिया मे,
लेकिन मैं भी माँ की तरह
खुद को खड़ी किये हूँ दीवार बनाकर,
माना बदल गया है ज़माना,
लेकिन दबे छुपे चल रहे है
वही पुराना ताना बाना,
और आज नन्ही गुड़िया आयी है आँगन,
माँ तुम्हारी ही बेटी हूँ,
मन कहता है जैसे मैने जिया,
ये नन्ही कली भी जियेगी
और न जाने कितने ऐसे ही
किलकारियां जियेंगी बस
कर के देखिए मन को मजबूत
क्योंकि
हौसला ही तो है..
जो जीवन को जीवन बनाता है,
असंभव लगने वाले भी
काम संभव कराता है..,
हौसला ही तो है....
सुप्रिया "रानू"
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