Saturday, November 25, 2023

धान काटती स्त्री

धान काटती स्त्री
धूप निकलने पर आई है खेतों में,
सुबह से चौके,तो बच्चे 
घर आंगन सब लीप पोत कर,
कपड़े और गीला आंगन सब सूखने को छोड़कर,
खुद भी सूख रही है सर्द की गुनगुनी धूप में,
सूखे धानों की बालियां समेटती
लगती है,समरूप
मेट्रो शहरों में तड़के भागती
स्त्रियों के ही,
जो किचेन बच्चे घर सब संभाल कर 
बालों के जुड़े बनाते,
दौड़ती चढ़ती मेट्रों, और बस में,
सूखता है उसका भी मन 
ऐरकंडिशन की भीनी ठंडक में,
और सूरज ढलते बेचैन सी भागती स्त्रियां
धान की बालियां साड़ी के कोरो पर लिपटी,
जुड़े ढीले और खाली टिफिन सब्जी से भरे बैग
और भागकर बच्चों को साइन से लगा लेंने को
बेकल स्त्रियां 
रसोई समेटकर सुबह की तैयारी कर लेने को 
बेकल स्त्रियाँ
सूखती तपती और स्थिर स्त्रियां।
सुप्रिया पाठक"रानू"

2 comments:

Shakuntla said...

अतिसुन्दर बहुत खूबसूरत और तुलनात्मक अध्ययन गाँव की और शहर की महिला का जीवंत चित्रण बहुत बधाई अनुजा

Supriya pathak " ranu" said...

हृदय से आभार अग्रजा

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