Friday, December 1, 2023

प्रेम और अपार

सच कह रहे हो ! 
प्रेम और अपार ,
उतर पाते हो क्या इस प्रेम में
स्वार्थ के उस पार,
उस वक़्त जब दूर कहीं 
अकेले देख रहे होते हो 
समुंदर की लहरें 
तो उठता है एक समुंदर का तूफान
तुम्हारे दिल मे भी 
मेरे लिए,
या यूँही बस कह देते हो 
की याद आ रही,
प्रेम शब्दों में नही खोता कभी,
एहसास एहसास को ढूंढ लेता है
बिना किसी माध्यम के,
और फिर ये न दूर होता कभी,
सुनो शब्दों में न करना प्यार मुझे,
बस मौन का एहसास देना,
यकीन मानो मैं दूर से भी थाम 
लूँगी,
तुम सुबह बने तो ढलकर 
मैं शाम दूँगी।
थोड़ा ही सही सच्चा दुलार करना,
अपार न सही पर स्वार्थ से परे 
प्यार करना।
सुप्रिया पाठक "रानू" 

गौरैया

चहकती फुदकती मीठे मिश्री दानों के  सरीखे आवाज़ गूंजता था तुम्हारे आने से बचपन की सुबह का हर साज़ घर के रोशनदान पंखे के ऊपरी हिस्से  कभी दीवार ...