Wednesday, March 20, 2024

गौरैया

चहकती फुदकती
मीठे मिश्री दानों के 
सरीखे आवाज़
गूंजता था तुम्हारे आने से
बचपन की सुबह का हर साज़
घर के रोशनदान
पंखे के ऊपरी हिस्से 
कभी दीवार की छोटी सुराखों
में बना होता था तुम्हारा छोटा सा मकान
न जाने कितनी बार तुम्हारे बच्चे जब 
गिरते थे धरा पर कितनी 
हिफ़ाज़तों से रखते थे हम बच्चे
उन्हें घर मे 
और तुम उस पूरे समय बेकल रहती थी,
कहीं ये मानव मार न दे मेरे बच्चे को 
इसी डर में 
इतनी बड़ी दुनिया मे तुम छोटी सी चिड़िया 
के रहने के सारे संसाधन कम हो गए,
बुद्धिजीवी श्रेष्ठ जीव बन कर भी 
हम तुम्हारा लोप हो जाना सह गए,
अब भी तो जागना बनता है,
थोड़ा अपनी सुविधाओं से समझौता कर 
तुम गौरैयों का एक घर तो हम सबके घर मे जंचता है।
आ जाओ वापस की हमने बना डाले हैं रोशनदान हर घर में,
अलार्म को छोड़ तुम्हारी आवाज़ से रोज ऑंखे खोलने का सुकून भी आ जाये अब शहर में ।

4 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर रचना

Supriya pathak " ranu" said...

सहृदय आभार

Nandan kashyap said...

बचपन की यादें घर के आंगन में एक कोना इनका होता था । बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।

Supriya pathak " ranu" said...

आभार अनुज

गौरैया

चहकती फुदकती मीठे मिश्री दानों के  सरीखे आवाज़ गूंजता था तुम्हारे आने से बचपन की सुबह का हर साज़ घर के रोशनदान पंखे के ऊपरी हिस्से  कभी दीवार ...