Friday, April 13, 2018

तुम और मैं एकल

कर  सकूं,तुम्हारे उत्तेजित उद्वेगित
चंचल,शांतिहीन मन को,
हर्षित,अटल ,अचल..

होगी मेरी उपलब्धि जब
छोड़ सारी युगल परिभाषाएँ
हो जाऊं तुम संग मैं एकल...

रख कर मेरी गोदी में सर
ले लेना गहरी सांसे ,
दे देना मेरे कर में अपने मन का सारा
कोलाहल, सारी उत्तेजना,
सारी अशांति सब अपूर्ण आसें ,
धो डालूंगी सारे पीर तुम्हारे ,
कर के मिश्री सा अपना अश्रुजल...

होगी उपलब्धि मेरी जब
छोड़ सारी युगल परिभाषाएँ
हो जाऊं तुम संग मैं एकल....

जीवन के इस सफर में,चलते चलते जब थक जाओ,
होकर निराश मन कहे यहीं कहीं रुक जाओ,
तुम भूलकर सारे बंधन,छोड़कर सारा चिन्तन,
भर लेना अपना तन मन,
कर लेना तर हृदय का कोना कोना,
बन कर निर्झर स्वच्छंद नदी
बह जाउंगी तुम्हारे समक्ष मैं कल-कल

होगी उपलब्धि मेरी जब
छोड़ सारी युगल परिभषाएँ,
हो जाऊं तुम संग मैं एकल..

तुम जाना जब ठिठक बाधाओं से,
मैं बन आउंगी जीवन मे एक हलचल,
बन कर साहस, धैर्य,शांति,तुम्हारा बल,
सुकून का एक ठहराव,
गर बन पाऊँ सच मे,तुम्हारी संगिनी हर पल

होगी उपलब्धि मेरी जब,
छोड़ सारी युगल परिभाषाएँ
हो जाऊं तूम संग मैं एकल....
 

सुप्रिया "रानू"

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