झकझोर गया है..,
खुले आसमान तले जीनेवालों का मन,
आँधियों का आगमन..
छोटी अम्बिया जो डालियों से लगी हैं,
जाके चुम आती हैं पत्तियों को जो सगी हैं,
आँधी आयी थी ,आज उनका मन आंकने ,
देखो कैसे धरा पर धूलों से लिपटी पड़ी है,
मानो प्रकृति के प्रहार से ठगी है,
झकझोर गया है,
खुले आसमान तले जीनेवालों का मन,
आँधियों का आगमन..
धूप गर्मी बरसात में जो वृक्ष अडिग रहा,
विपरीतताओं में भी जो अचल स्थिर टिका,
हवाओं ने यूँ रुख मोड़ डाला है,
खड़े विशाल वृक्ष को धरा पर रौंद डाला है,
झकझोर गया है,
खुले आसमान तले जिनेवालों का मन,
आँधियों का आगमन..
आज ही बनाया था छोटी गौरैयों ने
एक एक तिनका समेट के अपना नीड़,
बिखेर डाला है आँधियों ने एक एक तिनका,
असहनीय है नन्ही जानों का ये पीड़,
झकझोर गया है,
खुले आसमान तले जीनेवालों का मन,
आँधियों का आगमन..
सड़क किनारे बच्चों ने नई पेंटिंग बनाई थी,
उनकी अम्मा ने धूप में बिछाया था बिछावन,
आंधियां उड़ा ले गयी नन्ही कलम की कला,
बारिश गिला कर गयी है आज सारे बिछावन,
झकझोर गया है ,
खुले आसमान तले जीनेवालों का मन
आँधियों का आगमन
देख के आँधियों का रुख
आज ठाना है अम्बिया जो लगी हैं पेड़ों से,
जुड़ी रहेंगी अड़ी रहेंगी ,
वृक्षों ने अपनी जड़ों को और मजबूती से बिखेर डाला है धरा में,
गौरैइयाँ जुटा रही फिर से तिनका तिनका,
बच्चों ने कलम थाम ली,और अम्मा हवाओं को कोष कर फिर बिछावन फैला रही है,
और हम
अपने सारे खिड़की दरवाजे बंद कर
सारा सामान बचा लेते हैं,
फिर भी बस पड़ी धूल घर मे साफ करना
लगता है बेमन
झकझोर गया है,
खुले आसमान तले रहने वालों का मन
आँधियों का आगमन...
सुप्रिया "रानू"
No comments:
Post a Comment