Thursday, April 5, 2018

ये शोर कैसा

है धरा हम सबकी,
हम सब हैं इसके,
तो यह हिस्सा तेरा यह है मेरा
ये शोर कैसा...

है फलक सबके ऊपर ही,
फिर ये सरहद पार का आसमान तेरा
इस पार का मेरा ,
ये शोर कैसा...

करनी है सबको ही इबादत,
अर्चना और शुक्रिया ऊपरवाले का ही
फिर ये अल्लाह मेरा,
वो भगवान तेरा,
ये शोर कैसा...

बह रही जब एक नदी निर्बाध सबको तृप्त करने
फिर इसका इतना  पानी मेरा
और इसका इतना  पानी तेरा ,
ये शोर कैसा...

दौड़ता है एक ही लाल रंग का लहू ,
जब तेरे और मेरे बदन में भी,
फिर मैं मुसलमान,तू हिन्दू,
वो सिक्ख और ये ईसाई
ये शोर कैसा...

थोड़ी देर को पाश्विक प्रवृति ही अपना लो,
एक के गिरते सब मिल के उठा लो,
बन सको जो जानवर भी पलभर को,
ये लड़ाई वो मारामारी का आलम,
फिर रह कहाँ जाएगा
कोई शोर कैसा....

सुन सको तो सुन लो
मैं तेरा तू मेरा
मेरा सब कुछ तेरा तेरा सब कुछ मेरा
प्रेम में लिप्त शोर ऐसा...
प्रेम में लिप्त शोर ऐसा....

                            सुप्रिया "रानू"

No comments:

गौरैया

चहकती फुदकती मीठे मिश्री दानों के  सरीखे आवाज़ गूंजता था तुम्हारे आने से बचपन की सुबह का हर साज़ घर के रोशनदान पंखे के ऊपरी हिस्से  कभी दीवार ...