Thursday, May 17, 2018

स्पर्श

वो पहली छूउन
जिससे मैं ठिठकी,
पर आश्वस्त हो गयी,
एक विश्वास,एक तरंग,
नई आशा,नई उमंग,
का संचार था,
वो स्पर्श मानो मुझमे
नई ऊर्जा का आधार था,
मूंदी नयनों से भाँपा था मैंने,
एक भाव जो निस्वार्थ था
जिसमे यह कामना न थी
कि मैं सामाजिक,शारीरिक,
पारिवारिक,खोखली प्रतिष्ठा,
खोखले परम्पराओं के आडम्बर,
खोखला अहम, खोखली इज़्ज़त का ढिंढोरा
जैसी जरूरतों का निवाला बनूँ,
अपने हाथों को हृदय से लगाकर पूछा था
मन से बड़े मन से ये सवाल मैंने,
ये स्पर्श कैसा है,
टटोल कर अंतश तक मेरे मन को
मन का प्रत्युत्तर था,
यह स्पर्श सिर्फ और सिर्फ प्रेम से भरा है,
तुम खिल पाओ ,
जैसे कुशुम खिल जाती है,
एक रोशनी के किरण से
वैसी ही सैकड़ों किरणे भरी हैं
इस प्रेम के एहसास में,
तुम उड़ पाओ ऐसा ही
असीम विश्वास भरा है
इस निश्छल प्रेम में,
मूंदे नयन की एहसास छुअन की,
मानो था एहसास नव  जीवन की
इससे पहले की ये मन भ्रमित हो जाये,
और मैं देव समझ बैठूं उसे,
खुल गए मेरे नयन,
और छुप गया मेरे स्वप्न में
वो स्नेहिल छुअन....
सुप्रिया "रानू"

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