आज पितृ दिवस है,
पर पिता एक दिवस तक सीमित न है,पिता तो पुरा जीवन है...
बस अब तक के छोटे संस्मरण शब्दों मे पिरो दिया...
पापा आप मेरे लिए....
मूसलाधार बारिश मे भीगती
एक नन्हीं चिडिया के लिए पक्की छत
लडखडाते कदमों की
सहारे की उंगलियां
ना पहुंच सकने वाली हर ऊँचाई
के लिए दृढ कंधों का आसरा,
सुबह की प्यार से
माथा सहलाकर जगाने का अहसास,
तो शाम को बाजार से आए मीठे पेडे,
मेरी परीक्षाओं मे सुबह मेरे साथ जगने वाली आँखे
तो शाम तक मेरे चेहरे पर तैरती मुस्कान
मेरी असफलताओं मे भी मुझ पर नाज,
तो सफलताओ मे गर्व
माँ की अनुपस्थिति मे थोडी टेढी
मगर गरम रोटियाँ,
थोडे बुखार मे भी मेरे माथे पर
ठंडी पट्टीयां,और बिस्किट के कितने पैकेट,
अक्सर मेरे सोने का नाटक,
और आपकी गोद मे अपने बिस्तर तक पहुंचने की साजिश
माँ के साथ खट्टी मीठी नोकझोंक,
तो कभी आपकी साजिश
मेरे हाथ की चाय पीने के लिए
माँ के चाय की शिकायत,
मेरी हर परीक्षा को सफल करना ही पैमाना न बनाना
अपितु उसे एक अनुभव गिनना,
और मेरी हर हार को
एक सीख बताना,
माँ के बाद मेरी दोगुनी चिंता करना
मैं हूँ न हमेशा ये आसरा देना
सामाजिक परंपरा मे मुझे दान कर के भी
मेरे हर पल की चिंता..
पापा आप जनक भी हैं,पालक भी,
सरंक्षक भी,
मेरी हर ईक्षा की पूर्ति भी..
सुप्रिया "रानू"
1 comment:
बहुत ही सुन्दर रचना दीदी।
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