Wednesday, May 15, 2019

तुम्हारी छाया

मेरा अस्तित्व मेरी पहचान
मेरा शरीर मेरा नाम
तुम जैसा तुम्हारी प्रतिछाया हूँ
माँ जीवन मे मेरे
तुम देह और उस देह से बनने वाली छाया हूँ मैं...

तुमसे तुमसी जनि,
तुमसे तुमसी बनी,
जीवन संघर्षों में तपी,
तपकर कुंदन में ढली,
तुमने जना था सोना
तभी तो आज मतलब रखता
है मेरे इस जीवन का होना,
तुमसी बनी तुम्हारी काया हूँ मैं,
तुम देह,और उस देह से बननेवाली छाया हूँ मैं...

तुमसे सीखा दुख में हँसना,
और सुख को चुपचाप तकना,
तुमसे जाना कभी चुपचाप सामाजिक नियमो को मान जाना
तो कभी अपनी घुटन पर आवाज उठाना,
मैं भिन्न नही नारी से,
वही सामाजिक जाल में उलझी
नारी की माया हूँ,
तुम देह और उस देह से बनने वाली छाया हूँ...

मेरा अस्तित्व मेरी पहचान
मेरा शरीर मेरा नाम,
तुम जैसी तुम्हारी प्रतिछाया हूँ,
माँ जीवन मे मेरे
तुम देह सी और मैं उस देह से बनने वाली छाया हूँ....
सुप्रिया"रानू"

3 comments:

अनीता सैनी said...

बहुत सुन्दर सखी
सादर

Kamini Sinha said...

तुम देह और उस देह से बनने वाली छाया हूँ मैं...
बेहतरीन सृजन सखी

Sudha Devrani said...

बहुत सुन्दर रचना ...
वाह!!!

गौरैया

चहकती फुदकती मीठे मिश्री दानों के  सरीखे आवाज़ गूंजता था तुम्हारे आने से बचपन की सुबह का हर साज़ घर के रोशनदान पंखे के ऊपरी हिस्से  कभी दीवार ...