मेरा अस्तित्व मेरी पहचान
मेरा शरीर मेरा नाम
तुम जैसा तुम्हारी प्रतिछाया हूँ
माँ जीवन मे मेरे
तुम देह और उस देह से बनने वाली छाया हूँ मैं...
तुमसे तुमसी जनि,
तुमसे तुमसी बनी,
जीवन संघर्षों में तपी,
तपकर कुंदन में ढली,
तुमने जना था सोना
तभी तो आज मतलब रखता
है मेरे इस जीवन का होना,
तुमसी बनी तुम्हारी काया हूँ मैं,
तुम देह,और उस देह से बननेवाली छाया हूँ मैं...
तुमसे सीखा दुख में हँसना,
और सुख को चुपचाप तकना,
तुमसे जाना कभी चुपचाप सामाजिक नियमो को मान जाना
तो कभी अपनी घुटन पर आवाज उठाना,
मैं भिन्न नही नारी से,
वही सामाजिक जाल में उलझी
नारी की माया हूँ,
तुम देह और उस देह से बनने वाली छाया हूँ...
मेरा अस्तित्व मेरी पहचान
मेरा शरीर मेरा नाम,
तुम जैसी तुम्हारी प्रतिछाया हूँ,
माँ जीवन मे मेरे
तुम देह सी और मैं उस देह से बनने वाली छाया हूँ....
सुप्रिया"रानू"
3 comments:
बहुत सुन्दर सखी
सादर
तुम देह और उस देह से बनने वाली छाया हूँ मैं...
बेहतरीन सृजन सखी
बहुत सुन्दर रचना ...
वाह!!!
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