Sunday, July 7, 2019

गर्भपात: एक अन्तःव्यथा

न जला पायी न दफना पायी,
तुमने जन्म भी नही लिया,
और मृत्यु के ग्रास में समा गए,
सोच कर सोचती रह जाती हूँ,
शब्दों में अपनी व्यथा न कह पाती हूँ,
वो जो सपने और उम्मीदें थी तुमसे जुड़ गई
कैसे तोड़ दूँ उनकी एक एक कड़ी,
लगा के फिर कोई उम्मीद नई ।
अभी का दौर और जीव विज्ञान की पढ़ाई,
तुम्हारे पल पल की वृद्धि की खबर मैं रख पाई,
आज वही अंतर्द्वंद की स्थिति है,
टुकड़ो और बूंदो में देखना तुम्हे ही परिस्थिति है
मन व्यथित होके बस इतना ही कह पता है,
न जला पायी न दफना पायी,
बून्द बून्द रक्त से सींचा था जैसे,
वैसे ही बून्द बून्द तुम्हारे अस्तित्व को बहा पायी।
कैसे कह दूं कि तुम मेरे थे ही नही,
और कैसे मान लूं की यह नियति का खेल है,
कहीं न कहीं मेरी ही कोई गलती रही होगी
जो एक नन्ही जान के विकसित दौर को न बचा पायी ।
अंतः व्यथा के ये अनगिनत पहलू कोई न समझ पायेगा,
गलती होगी कोई तुममे यही हर कोई कह पायेगा,
पर एक माँ का ही मन जानता है
वो जन्म के पश्चात नही अपितु
गर्भधान से ही माँ बन जाती है,
कोइ दिखता भी नही और वो उसके सपने सजाती है,
दुविधा बस यही मन को सता गयी
तुम्हे देखा भी नही और तुमसे दूर हो गयी।
न जला पायी न दफना पायी,
ऐसी अभागन माँ है जो माँ वही न कहला पायी ।
सुप्रिया"रानू"

6 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार, जुलाई 09, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Supriya pathak " ranu" said...

सहृदय धन्यवाद

विश्वमोहन said...

मर्मस्पर्शी!

Supriya pathak " ranu" said...

सहृदय धन्यवाद आदरणीय

शुभा said...

बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना ।

Sudha Devrani said...

बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन....

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