Monday, July 22, 2019

एहसास

ये न शब्दों में कह पाती हूँ,
न अश्क़ों में रख पाती हूँ,
मन से महसूस कर के
मन के ही कोने में धर जाती हूँ,
ये मेरे अहसासों की दास्तान है
जुबान से कहाँ बयान है।

बचपन मे खिलौनों की ज़िद
और उन्हें पाने के बाद का एहसास,
बारिश में भीगने की ज़िद
और जी भर भीग लेने का एहसास,
छोटी छोटी बातों पर झगड़ना
और फिर रूठे दोस्तों के मन जाने का एहसास,
मन के एक कोने में धर रखा है सबको जतन से,
ये न होंगे बयान अब कथन से ।

ये मेरे एहसासों की दास्तान है.....

यौवन और उसके तेज़ तेवर
जो चीज़ पाना हो मुश्किल उसकी ही ज़िद
और लगा देना जी जान
थोड़ी सी ताकत थोड़ा सा आन
पिघल जाना पल में
और ठन जाना बेबाक,
पहले प्यार की खुमारी
और फिर उसे भूल जाने में गुजरी उम्र सारी,
एहसासों का ही तो ये यौवन है,
धड़कता इनकी यादों में जीवन है

ये मेरे एहसासों की दास्तान है....

खेल कूद में गिरकर छिले घुटनो का दर्द,
प्रेम की मात में टूटे हृदय का दर्द,
असफलताओं में खोई सफलताओं की कोशिशों के दर्द,
छूते छूते छुटे हुए आसमान का दर्द,
ज़िन्दगी वक़्त,हालात,रिश्तों से मिले
दर्द और ताउम्र दर्दों की सौगात का दर्द
एहसास ही तो है सबका
न कोई मात्रा न कोई हर्फ़
न कोई नज़्म न कोई कविता
उभर पाती हैं इन एहसासों की जुबान को
कैसे लिख दूँ मैं एहसासों के दास्तान को

ये मेरे एहसासों की दास्तान है,
मन के एक कोने में धर रखा है जतन से
ये अब न बयान हो पाएंगे किसी कथन से

सुप्रिया "रानू"

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