Wednesday, July 31, 2019

मन ही तो है

मैं लाख मनाती हूँ,
कभी थम जाता है,
तो कभी ज़िद पे अड़ जाता है
मन ही तो है,
जानता है कहने को हैं
बस अपने अपने होने का
असल फ़र्ज़ कौन निभाता है,
सौ नुकसान झेल कर
न जाने क्यों एक और झेलने में
उबल आता है
मन ही तो है,
जानता है सारी चाहते पूरी
नही होती ज़िन्दगी में
सारे हालातों से समझौते करता है,
समझौतों की फिराक में कभी
उबल ही जाता है
मन ही तो है,
जानता है,ज़िन्दगी आसान नही है
हर सफर कांटों पे चलता है,
पर हर वक़्त जब कांटे ही मिले
तब तो फूल को कहना बनता है
क्या करे फुट ही आता है
मन ही तो है,
जानता है माँ बाप नही नन सकता कोई भी
फिर क्यों बेमतलब
लोग अपनी अदाकारी का पर्दा डालते हैं
उबल आता है
मन ही तो है,
मैं लाख मनाती हूँ,
कभी मान जाता है
तो कभी एकदम से अड़ ही जाता है मन ही तो है.....

सुप्रिया "रानू"

4 comments:

Ravindra Singh Yadav said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 01 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Supriya pathak " ranu" said...

सहृदय धन्यवाद आदरणीय जरूर उपस्तिथि दर्ज रहेगी

Sudha Devrani said...

वाह!!!

Shakuntla said...

बहुत सुंदर मन ही तो हैं

गौरैया

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