Tuesday, January 21, 2020

चिंगारी

सालों से दबी हैं न जाने कई हैं,
चिंगारियों की तरह सुलगते ख्वाब।

कभी कोई विवशता,तो कभी कोई मजबूरी रही,
कभी मन ही न हुआ तो कभी मेहनत से दूरी रही,
सुलगते बुझते कर ही लेता है इंसान परिस्थितियों से समझौता,
और फिर न जाने किस किस को दोष देकर
मना लेता है अपने मन को,

सालों से दबी हैं न जाने कई हैं,
चिंगारियों की तरह सुलगते ख्वाब ।

थोड़ी तो कमी रही होगी 
एक दृढ़ इक्षा शक्ति की,अपनी परिस्थितियों से पर हो जाने की,
कुछ पल को सब कुछ भूल जाने की,
सारे मतलबों को सिद्ध कर देने की मनसा से हट जाने की,
स्वयं को सोच लेने की हठ की,
नही तो ये ख्वाब सच बनकर आज जी रहे होते,
और हम परिस्थितियों और यूँ न रोते।

सालों से दबी है,न जाने कई हैं,
चिंगारियों की तरह सुलगते ख्वाब।
सुप्रिया "रानू"


8 comments:

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा said...

एक गीत याद आ गया... " चिंगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाए, सावन जो अगन लगाए, उसे कौन बुझाए"
यूँ ही लिखते रहें । साधुवाद ।

Anuradha chauhan said...

बेहतरीन रचना सखी 👌👌

Supriya pathak " ranu" said...

सह्रदय आभार आदरणीया यशोदा जी आप सर्वदा ही उत्साहवर्धन करती हैं और मुझे प्रेरित करती रही हैं कि मैं लिखती रहूँ, आदरणीय पुरुषोत्तम जी और आदरणीया अनुराधा जी आप सब के ये शब्द मेरेवलिये बहुत मायने रखते हैं जीवन की उलझनों में मैन स्व को खो दोय था पिछले 6 महीनों में लिखना चोर दिया था पर इतने अंतराल के बाद भी आप सबका प्रेम यथावत देख कर मन मे बहुत सुकून है।

Sweta sinha said...

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२७ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

Ritu asooja rishikesh said...

सुलगते ख्वाब सुन्दर प्रस्तुति

Rohitas Ghorela said...

न जाने कितनी ही दमित इच्छाएं होती है हमारे मन मे एक चिंगारी की तरह।
लाजवाब प्रस्तुति।
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र 

Supriya pathak " ranu" said...

सहृदय धन्यवाद स्वेता जी व रोहितास जी

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा said...

बहुत सुंदर रचना। अनन्त शुभकामनाएँ ।

मैंने, कतिपय कारणों से, अपना फेसबुक एकांउट डिलीट कर दिया है। अतः अब मेरी रचनाओं की सूचना, सिर्फ मेरे ब्लॉग purushottamjeevankalash.blogspot.com या
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आप मेरे ब्लॉग पर आएं, मुझे खुशी होगी।
स्वागत है आपका ।

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