होती हैं थोड़ी अल्हड़,थोड़ी बिंदास
घूमती रहती हैं आजीवन धुरी बन कर
अपनी माँ के आसपास
माँ की अनुपस्थिति, और
जिम्मेवारियों का बोझ
बना देता है उन्हें वक़्त से पहले समझदार
फिर भी अपनी किस्मत मानकर
हर ताना सह लेतीं हैं,
किसी से भी नही अपने मन
का हर दर्द माँ के एक तस्वीर से कह लेती हैं
बाप के लाड़ ने बिगाड़ा है,
ये कहना हर कोई जानता है,
पर एक माँ के बिना होकर भी,
बाप और भाइयों को
किस तरह संभाला है
ये कहाँ कोई मानता है,
जानती हैं प्यार की कमी को,
सो दिल खोलकर प्यार बाँटती हैं,
दुख के हर लम्हे को भी हंसकर काटती हैं,
मै गलत नही हूँ यह भी न कह पाती,
कोई कहे मेरी बेटी सबसे अच्छी है,
यह अपने पीठ पर कहां सुन पाती,
न मायका न ससुराल ही अपना हो पाता है,
फिर भी नियति उसकी दोनों जगह को निभाना है,
माँ की कमी को बस उसका दिल ही जान पाता है,
इस दर्द को कोई कहाँ समझ पाता है,
हाँ होती हैं बिन माँ की बेटियां
थोड़ी अल्हड़ थोड़ी बिंदास
हंसते चेहरे में होता है उन्हें भी दर्द का आभास।
सुप्रिया"रानू"
13 comments:
मेरी कहानी को शब्दों में ढालने हेतु हार्दिक आभार
उम्दा रचना के लिए बधाई और साधुवाद
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५-०२-२०२१) को 'स्वागत करो नव बसंत को' (चर्चा अंक- ३९६९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
होती हैं बिन माँ की बेटियां
थोड़ी अल्हड़ थोड़ी बिंदास
हंसते चेहरे में होता है उन्हें भी दर्द का आभास
हृदयस्पर्शी रचना 🌹🙏🌹
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 07 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
किसी से भी नही अपने मन
का हर दर्द माँ के एक तस्वीर से कह लेती हैं
हृदयस्पर्शी सृजन
दिल को छूती रचना।
अत्यंत भावपूर्ण एवं संवेदनशील अभिव्यक्ति ।
सुप्रिया जी, क्या खूब लिखा कि ...किसी से भी नही अपने मन
का हर दर्द माँ के एक तस्वीर से कह लेती हैं
बाप के लाड़ ने बिगाड़ा है,
ये कहना हर कोई जानता है,
पर एक माँ के बिना होकर भी,
बाप और भाइयों को
किस तरह संभाला है
ये कहाँ कोई मानता है,
जानती हैं प्यार की कमी को,
सो दिल खोलकर प्यार बाँटती हैं,...वाह मन को अंतर तक छू गई आपकी ये रचना
बहुत अच्छी रचना। माँ के ना होने की कल्पना मात्र से इस उम्र में भी सिहर उठती हूँ। माँ वह धुरी होती है जिस पर पूरा परिवार टिका होता है। माँ के ना रहने पर परिवार की बेटी को ही उनकी जगह लेनी होती है, सब सँभालना होता है। हृदयस्पर्शी रचना।
बेहद भावपूर्ण सृजन।
सादर।
आदरणीया विभा जी मैने अपनी ही कहानी लिखी जानकर बहुत खुशी हुई कि आप भी इसी कहानी कबहिस्स हैं,खुशी इसलिए कि आप इस पूरे एहसास को महसूस कर सकती हैं है तो यह बेहद दुखद स्थिति,धन्यवाद आपके प्रोत्साहन के लिए ,
दिव्या जी सहृदय धन्यवाद मंच पर स्थान देने हेतु,
कामिनी जी,ज्योति जी,अमृता जी,अलकनंदा जी,मीना जी स्वेता जी आप सबको हृदयतल से बाहर इस एहसास को बांटने के लिए और मेरे शब्दों को महसूस करने के लिए ।।।
निःशब्द हूं पढ़कर
सुन्दर रचना
मन को गहरे तक छू गई.
Post a Comment