जब तक मन न बने स्व अवगुण का दर्पण।
बंदिश मुक्त रखा बच्चों का बचपन,
आस संजोए मात-पिता मन ही मन।
उभरे बच्चों में हर तरह के सद्गुण,
पाबंदियों के बिन आये कहाँ से गुण।
उड़ता मन चाहे सदा उन्मुक्त गगन,
मुक्त मन को बांध न पाए बंधन।
चित ठहरे तो संजोए सब सद्गुण,
और त्यागे अन्तस् के सारे अवगुण।
बिना तपस्या कहाँ से पाएं ज्ञान गहन,
तज के सारे मोह करने होंगे बड़े जतन।
खुद की कमियों का कर स्वयं मनन,
प्रगक्ति पथ पर निरंतर रहे मन।
न रोक न टोका न बाँधा कभी मन।
कैसे करें भला सफलता आलिंगन ।।