Saturday, October 11, 2025

हम बेटियाँ

शादी के बाद हम काट दी गयी
जड़ों से
ससुराल और मायके हर जगह
कुछेक बातों के लिए 
तो कभी कुछेक आघातों के लिए,
कभी असीम प्रेम बना कारण
तो कभी चुप रह जाना हुआ वजह,
कभी सह जाना दुश्वार था 
कभी ना कह पाना ।
लेकिन जनना हमारे खून से लेकर रूह तक मे है,
हममें कोंपलें फूट आती हैं,
हर बार जब मायके 
का एक तिनका भी आकर स्पर्श कर जाए,
जिम्मेवारी एक भी गठरी
ससुराल से मिल जाये,
हम सब बिसरा कर फिर से खिल जाती हैं,
और महका देती हैं 
घर आँगन पीहर से लेकर  पी के घर तक का।
हम बेटियाँ धान हैं उगाई जाती हैं,
फिर जड़ से उखाड़ कर लगाई जाती हैं
फिर भी मन मन भर  चावल उगा देती हैं।



2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर

Anita said...

स्त्री मन को अभिव्यक्त करती सुंदर रचना

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