न जाने कितने काम जो दो लोग
मिलकर करते हैं ,
जो कई लोग मिलकर करते हैं
उन सबको मैं अकेले कर लेती हूँ,
मैं महान हूँ
मुझे सारे रिश्ते निभा लेने हैं,
सब सुन लेना है सब सह लेना है,
मैं महान हूँ
मुझे कहीं भी बुरा नही बनना है,
मैं महान हूँ मुझे जीवन मे
सभी सामाजिक सांस्कृतिक पारवारिक नैतिक
दायित्व पूर्ण करने हैं,
लेकिन इस महान बनने में रह जाती है
एक घुटन,
एक चुभन,
एक न पूरी होने वाली उम्मीद,
एक अपूर्ण आश
कई टूटे सपने,
और मेरा आम बन पाना।
6 comments:
सुंदर
कई - कई बार तो महान बनने के लिए मजबूर किया जाता है अपने स्वातंत्र्य को भूलाकर आँखें डबाडबा दी जाती है । सशक्त अभिव्यक्ति ।
बहुत कुछ बिन कहे ही कह जाती है रचना
महान बनना नहीं है, बस अपने महान होने यानि अनंत होने का अहसास करना है, तब कोई ख़ास नहीं रह जाता, क्योंकि अंतरतम में सब वही तो हैं
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर
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