मैं बनूँ शरद तुम्हारे जीवन की,
रच बस जाने वाली खुशबू
तुम्हारे अंतर्मन की...
बन हरसिंगार खिलूँ हर रात,
महक उठे हर रात चाँदनी
मेरी खुशबू से तुम्हारे तन की..
बन कोहरे सी ढँक लूँ,
तुम्हारे सारे दुख की जलती किरणे,
और ओस की बूंदों सी
बीछ जाऊँ तुम्हारे मन की धरा पर..
मैं बनूँ शरद तुम्हारे जीवन की....
बन ऊनी शॉल लिपट कर तुमसे
ठंड की सारी सिकुड़न दूर कर जाऊँ,
तो कभी गुनगुनी धूप की तरह
तुम्हारी तपन बन जाऊँ..
सरसो के साग और मक्के की रोटी
की तरह मक्खन की तरह तुम्हारे जीवन
में घुल जाऊँ...
मैं बनूँ शरद तुम्हारे जीवन की....
हो भले ही 2 माह का मेरा अंश तुम्हारे जीवन मे,
पर प्रेम की तपन और मेरे समर्पण का रंग
भर रहे तुम्हरे अंतर्मन में ..
आंवलें लिपटे होते हैं जैसे
अपनी तनों से वैसे ही लिपटा रहे
तार हम दोनों के मन की
मैं बनूँ शरद तुम्हरे जीवन की,
रच बस जाने वाली खुशबू
तुम्हारे अंतर्मन की...
सुप्रिया"रानू"
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