कैसे कहें अपनी आपबीती
कोई कहानी, इन अश्कों की जुबानी,
बेवक़्त आते ज़रूर है,
पर कोई एहसास ही
झिड़क जाता है इन्हें,
आंखों की गहराई में डूबे
मोतियों सरीखे अश्क़
पलको से छिड़क जाता है इन्हें,
कहूँ जो रोकर कोई लफ्ज़
तो कमजोर समझ लेती है दुनिया,
अक्सर किसी की मार्मिकता पर
निकल जाने वाले अश्क़ों को देख
बेवकूफ समझ लेती है दुनिया,
पर ये कहाँ समझ पाते है कुछ भी
भावनाओं के गुबार में डूब कर
आंखों से सरक आते हैं कभी भी।
अब अश्क़ों का मोल भी कहाँ रह गया है,
कितनो के झूठ ने इनकी सत्यता छल गया है,
कोई रो भी ले तो अब झूठ मान लेते हैं लोग,
क्योंकि अब झूठ में भी अश्क़ों को दान देते हैं लोग,
इसलिए अब तन्हाई में ही
अश्क़ बहा लेती हूं,
सर रख दूँ कहीं
ऐसे कोई कंधे का
आसरा कहाँ लेती हूँ,
इन नादान मासूम अश्क़ों की लाज
बचा लेती हूँ,
झूठे लोगों से अपने आंसू छुपा लेती हूँ,
बचा लेती हूँ,इनकी मासूमियत सी हस्ती,
ताकि न बने झूठे आंसुओं की कहानी
ऐसे हालात में बताओ कैसे कह दूँ
अपनी आपबीती कोई कहानी
इन अश्क़ों की ज़ुबानी
सुप्रिया "रानू"
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